Thursday, June 7, 2012





यह न कहानी है न किस्सा है ---- मेरे दिल का टूटा हुआ एक हिस्सा है----घंटों बतियाते बरामदे की सीढ़ी पर बैठे ---- चाय के अनगिनत प्याले यूँ ही गटक जाते थे ---- वह मेरा favourit वह नीला कप ---जिस पर था एक बड़ा सा smily --- मुझे चिड़ाने की खातिर पहले ही लपक लेते थे ---- तुम हमेशा उस आखिरी सीढ़ी पे ही बैठा करते थे --जब पूछा तो बोले, क्या करूँ ऊंट सी लम्बी टांगे कहाँ ले जाऊ ----- और मैं हमेशा पहली सीढ़ी पे ---तुमने पूछा नहीं क्यों ---- धूप की किरण जब पत्तों से छन तुम्हारी गर्दन पर गिरती --- वह काला तिल ----दिल का आकार ले लेता था ---- एक किताब हमेशा रहती थी तुम्हारे साथ-- उसे पलटते हुए वही अधलेटे तुम कही खो जाते थे --- कितनी जलन होती थी मुझे उस मुई किताब से --- पर यह क्या पता वह तो बहाना था तुम्हारा वक़्त बिताने का ---- याद है उस दिन जब तुम कहने आए थे -- आज तुम्हारा Interview है ---कितना खुश थे तुम --- अचानक उठते हुए टल्ला लग कप टूट गया ---- ओह !!! सॉरी यह तुम्हारा favourit था--- don 't worry ऐसा ही दूसरा जल्दी ला दूंगा -----जाने दो कप ही तो है --- आज भी वह कप -- मेरी मेज़ पर रखा है-- बिन हत्थे का----टूटा ---बिन मूठ-------
खिड़की से छन- छन चांदनी झरती रही --- नहलाती हर कोपी- किताब -- कलम और उस बिन मूठ-- टूटे कप को -------लेने लगी आकार तरह तरह की तस्वीरें दिवार पे ---- वह दरमियानी तुम्हारी हंसी --- मेरी चोटी खीँच कहना मोटी--- मेरा झूट मूठ का झिकना -- तुम्हारा बिनबात के मानना --- वह खुशबू अभी भी मेरे बालों मे महकती है ----बन करूं पलकों के दरिन्चों को तो ---एक रेशमी अहसास तेरा लपेट लेता है --- कितनी रोई थी मै याद है जब --अचानक पीछे से "धप्पा' कह तुम हँसे थे -----गर्म गर्म चाय गिरी मेरी हथेली पे-- घंटों अपने हाथों में ले सहलाई थी--- देखो अब भी तुम्हारा स्पर्श बाकी है इन लकीरों में -----उस दिन कितनी बारिश थी -- मद्धिम सी पनीली आवाज़ में जब मैने कहा --आज यही रुक जाओ ------ तुमने पल भर जो देखा मेरी और --- उन गहरी - सवाली आँखों मे जाने क्या था की --- भीग गयी पूरी की पूरी --सूखे बरामदे में ----हल्के से सर झटक तोड़ी गुलाबी मदहोशी तुमने -- नहीं आज नहीं फिर कभी --------आज भी इंतजार है उस पल का ----- आज भी तुम्हारे कदमों की निशान बाकी है सीढियों के नीचे जहाँ तुमने कहा था --- don 't worry दूसरा ला दूंगा----------

आखिरी सीढ़ी की मिट्टी--- तुम्हारी छाप--- भरी है कप में ----अक्सर उड़- उड़ कर छा जाती है ---- मेरे जिस्म---रूह पे---लगातर रगडती हूँ ऑंखें पर किरकिरी नहीं जाती ----माँ घूर कहती---- रातभर सोई नहीं क्या .......इन लाल -लाल दीदे ले न जाने बाउजी के सामने ....उस दिन साफ़ करते समय ---मूठ का वह तीखा कोना चुभ गया---इस्सस --- हल्की सी सिसकारी और नन्ही सी सुर्ख बूंद---टकटकी लगा देखा----तो चमकने लगी लाल --गहरी लाल मुक्त मणि सी.....फूटने लगी अनगिनत प्रकाश की धाराएँ ..और धीरे -धीरे बदल गयी .....कांच के गोले में -----जिसमें हम-तुम थामे एक-दूजे का हाथ ---थिरक रहे -----बाँहों में ----कांधे पे---टिकाये---मधुर -धीमा ---संगीत बहने लगा मेरी पलकों पर ---और जा ठहरा तुम्हारे होठों पे -------पीने लगी -----तेरी यादें ---बातें ---मुलाकातें --जानती हूँ कोई वादा नहीं -----फिर भी न जाने क्यूँ है एक ठहरा -सा इंतजार .......खुस-फूस- फुसफुसहट ---मेरे आते ही चुप्पी -----साजिश मेरे खिलाफ---इनसे मिलो --यहाँ बैठो --चलो ..सवाल--पे सवाल---बेजान कठपुतली का खेल ......हल्दी-चन्दन--ढोलक की थाप ..मेहँदी ..हंसी-चुहलबाजी --- अग्नि--रस्में--फूल --रोशनी--पर फिर भी घुप्प अन्धकार  ....लगा धकेल दिया सबने मिल एक साथ ऊपर की सीढ़ी से-----जा टिकी आखिरी पे-----बिखरने लगी चुरा-चूरा ....उस दिन रोक नहीं पाई  थी खुद को-----वह चाट वाला रोज़ गुजरता था .....मौके फायदा उठा .....निगल गपागप---जल्दी से फेंका दोना  ----तुम अचानक समाने थे ....ठिठके....नजदीक आ ---तर्जनी से पौंछा ----होठों का भरी कोना---आज भी वह कोना सुलगता है रह रहके ----
लोग कहते हैं वक़्त मरहम है ------झूठ---सब बकवास----तुमने तो ठीक से अलविदा भी नहीं कहा ----कैसे मान लूँ नहीं आओगे-----पराई ..हूँ अब----पर टिकी हूँ अब भी उसी आखिरी सीढ़ी पे------खट बटन दबाते ही नहीं होता अँधेरा ------या उजाला-------on --off --मैं --तुम ---off --तुम  ---on --मैं ----on --हकीकत---off ---तस्वीरें---off ---on ---on ---off -----मैं --तुम-----याद----खट ----अँधेरा---उजाला-----off --on ---उफ्फ्फ्फ़ -----!!!!! लोग जीते थे कभी बिजली के बिना।...........क्रमश:-----------