Friday, December 27, 2013

सुनो ...सुनो न ...

सुनो , वो नर्म कतरे अपनी साँसो के ,
छोड़े थे जो गर्दन के पीछे ,
ठीक दाएँ कान के नीचे ,
आज भी सुलगते हैं..........................
सुनो , वो नमकीन से बोसे ,
छोड़े थे जो कोरों पर ,
ठीक बाएँ तिल के नीचे ,
आज भी थिरकते हैं ..................
सुनो , वो नाज़ुक सी छुअन ,
कंधे से हौले से सरकती ,
ठीक हथेली की दलहीज तक ,
आज भी झूर झुराती....सिहराती है.....................सुनो ...सुनो न ...

Sunday, September 29, 2013

हार गई हूँ .....गई हूँ हार .....!!!!!!!!!!!!

सुनो याद है न ,
वह छुपनछिपाई का खेल ,
बहुत पहले कभी बचपन मे ,
खेला करते थे हम - तुम ,
कंटीली झाड़ी, टेड़ी-मेड़ी चट्टान ,
बरसों खड़ा बूढ़ा बरगद का पेड़,
उसकी लटकती अंधेरी दाड़ी..... 
हर बार तुम नया ठिकाना ,
पता नहीं कैसे ढूंढ लेते थे तुम, 
मैं पगली - सिरफिरी - झींकती ,
खीजती - सुबकती ढूँढती - फिरती ,
पुकारती ज़ोर - ज़ोर से बार - बार ,
तेरा नाम .............................
मैं हार गई , सुनो हार गई हूँ मैं ,
अब तो बाहर आ जाओ न , सुनो ,
कहीं छुपे तुम शायद देख रहे मुझे ,
ले रहे मज़े मन ही मन मेरी अकुलाहट का ,
धम्म से कूद पड़ते अचानक ,
मैं बरसाती मुक्कियाँ तुम्हारी छाती पे ,
रोते - रोते लगातार बार - बार ,
जाओ नहीं खेलूँगी कभी तुम्हारे साथ ....
कभी नहीं ....कभी भी नहीं .......
तुम खींच चोटी मेरी , पकड़ अपने कान ,
अरे , पगली , खेल है न यह ,
तू तो यूं ही रूठ जाती है , रुदाली ............
फिर बना सरकंडो का ताज ,
रख सिर मेरे , कहते ,
अब मान भी जाओ , महारानी ............
खिलखिला , सब भूल - भाल ,
मान जाती हर बार ,
सुनो , सुन रहे हो न ,
आज फिर से खेल रहे तुम वही ,
पुराना बचपन का खेल ,
डरती , कांपती , सुबकती ,
पुकारती तुम्हारा नाम , बार - बार ,
मैं हार गई , सुनो हार गई हूँ मैं ,
गूँजती मेरी ही आवाज़,
सुनती हूँ टकराती ,
दीवारों , दरवाज़े,खिड़की ,
हवा , पानी, आसमान से ,
हार गई हूँ मैं , मैं गई हूँ हार ................ हार गई हूँ .....गई हूँ हार .....!!!!!!!!!!!!

Wednesday, September 18, 2013

एक पल

एक पल मे कितनी साँसे ,
कितनी साँसों मे कितनी धड़कन ,
कितने धडकनों मे तेरा नाम .....
गिनो ...सुनो,.... गिनो न..................!!
एक छन मे कितने लम्हे ,
हर लम्हे मे कितने सपने ,
उन सपनों मे भी सपने ,
हर सपने मे तेरा नाम ,
गिनो ...सुनो ,...गिनो न.............!!
 

Sunday, September 8, 2013

कह दो फिर से

सुनो , वो तुम ही थे न 
जो जीते - मरते थे मेरे लिए ,
कहते, जीता हूँ बस तेरे लिए ,
मेरी साँसो का हर तार जुड़ा है तुझसे ,
मेरी धड़कन का हर साज बस तेरे लिए ,
मेरी नज़रों की रोशनाई है तू ,
मेरे जीने का वजह है तू ...... 
एक बार नहीं , बार यही कहते थे ....कहते थे न ?
आज ..... 
ज़िंदा है जिस्म ,
मुर्दा गयी है रूह ,
क्यों नहीं आते तुम,
कहने वही बार - बार .......
मैं शायद जी जाऊँ ,
आ जाए कुछ जान ,
अटकी है मुट्ठी भर साँसे ,
बस तेरा ही है इंतज़ार .......
कह दो फिर से वही जो कहते थे बार - बार .......

Saturday, September 7, 2013

मेरा - तेरा बचपन

अतीत का वह पहला पन्ना ,
कितना सुखद , कितना भोला ,
न कोई चिंता न ही कोई फिकर ,
दोस्तों के संग बस धौल - धप्पा .... 
बारिश की बूंदों के संग - संग ,
छत पर जम कर खूब उछलना,
उड़ती पतंग के संग - संग ,
आसमान मे ऊंचे ही ऊंचे उड़ना ,
बना हवा मे महल और बुर्जी ,
पारियों के संग खूब विचरना..... 
माँ की आवाज़ को कर नाकारा,
गली मे रात होने तक खेलना ,
खाना - पीना किसीके भी घर,
अपना ही हो यह कब सोचना ,
घुटने की चोट पर धोती के कतरन ,
हल्दी - चूने का टपकता लेप ,
फिर भी करना जम कर हुड़दंग ,
अतीत का वह पहला पन्ना ,
कितना सुखद ...कितना भोला ......मेरा - तेरा बचपन .....!!!

Saturday, August 24, 2013

वो तुम ही थे

सुनो वो तुम ही थे न ,
जो हिस्साब की क्लास मे ,
सवाल हल करने की बजाय ,
चोरी- चोरी लिखते - काटते,
हाशिये पर मेरा और अपना नाम ,
कितनी बार , अनेकों बार ,
छिपाते दूसरों से पेन की रगड़ते ज़ोर से ,
पूरी ताकत से ....... 
क्या छिपा रहे थे सबसे ,
जो पनप रहा था , मन के भीतर ,
दबी - दबी मुस्कुराहट ,
पीठ पीछे फुसफुसाहट ,
क्या सुनती नहीं थी तुम्हें ,
या सुन कर भी रहते थे अनजान,
गलती से गर कोई लेता मेरा नाम तो ,
मुंह बिचका देते , आँखें तरेर ,
हो जाते मरने - मारने को तैयार ,
सबको कहते झुठा यह सब बेसिर पेर की बात ........
सुनो , वो तुम ही थे न ,
जो आधी छुट्टी के वक़्त ,
उसी नल के पास जम कर खड़े होते ,
जहाँ मैं आती सहेलियों के साथ ,
जानबूझ कर देर तक पीते पानी ,
मै खड़ी रहती करती इंतज़ार ,
टोकने पर आँखें तरेर कहते ,
अब क्या पानी पीना भी गुनाह है,
देकर धक्का निकल जाते ,
सुनो वो तुम ही थे न ....तुम ही .....तुम .....
सबको करते - करते झूठा साबित ,
कितना सच कर बैठे ,
जो नहीं कहा कभी ,
उसी पर अमल कर बैठे ,
क्यों नहीं कह पाये ,
जो तुम कहना चाहते थे ,
और मैं सुनना चाहती थी ....सुनो ,
वो तुम ही थे न .....तुम ...ही ...तुम.........
रख दिया हाशिये पे मुझे सदा के लिए ..... वो तुम ही थे न ...........तुम....?????

Friday, August 23, 2013

( तेरी याद बाकी है )

वो तुम्ही थे न ,
जो सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस बिन टपरी वाले बस - स्टॉप पर करते थे ,
मेरा दिन भर इंतज़ार ........... 
जबकि पता था कि मै ,
नहीं आऊँगी , 
फिर भी .... क्यों ???? 
वो तुम्ही थे न ,
सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस कुल्फी वाले से ले कुल्फी ,
पिघलने तक करते थे इंतज़ार ,
जबकि पता था कि मै ,
नहीं खाऊँगी ,
फिर भी क्यों.....??????
आज भी वह बिन टपरी का बस स्टॉप ,
वही खड़ा है,
वह कमबख्त कुल्फी वाला भी ,
बिना नागा घंटी बजता है ,
तुम नही, बस तुम नहीं .......सिर्फ मै ...अपने साथ ॥ ( तेरी याद बाकी है )

Tuesday, August 20, 2013

याद दिलाती राखी


धागा कच्चा हो या पक्का ,
चमकीली हो या फीकी ,
कीमत नहीं प्यार के मेरी ,
भाई भेज रही हूँ वेब से राखी .... 
बचपन की याद है,
शरारतों की बरसात है ,
पतंग का माँझा ,लट्टू की डोर ,
माँ की धमकी, पापा की डांट,
उन सभी की याद दिलाती राखी ,
मेरी मांगो की लंबी लिस्ट ,
तेरे वादो की लंबी फेहरिस्त ,
कुछ पूरी , कुछ अधूरी ,
थोड़ा रूठना थोड़ा मनाना,
रोना - झिकना फिर खिलखिलाना ,
जाने क्या - क्या याद दिलाती राखी ,
साइकिल पर बैठा गली का फेरा ,
चोरी से बर्फ का गोला खाना ,
पूरी रात वी सी आर पर पिक्चर ,
टिनटिन और फ़ेन्टम की छीनाझपटी ,
बार - बार याद दिलाती यह राखी ....

Sunday, August 18, 2013

चाहूँ अपना कोना

सीखा मैने बचपन से ही ,
अपना हिस्सा सबको देना ,
बिना न नुकर सब कुछ सहना ,
न रखना तुम अपनी बात ,
बस सिर झुका करना अमल ,
यूं तो कहने को घर मेरा भी है,
फिर भी चाहूँ अपना कोना ...... 
मेरी भी करे कोई फिकर ,
मुझ को भी देखे एक नज़र ,
मेरा भी हो कोई जिक्र ,
न रह जाऊँ बन सामान,
बन धड़कन धड़कूँ मैं.....
बन मुस्कान खिल जाऊँ ,
अब तक सिर्फ बनी नींव का पत्थर,
संगमरमरी मणि बन शीर्ष पर लहराऊँ मैं .......

Monday, August 12, 2013

बार - बार हर बार वही सवाल

कभी तो ऐसा था तुम सब जान जाती थी ,
मेरे आने से पहले मेरी आहट पहचान जाती थी,
अब क्यो पूछती हो बार - बार , हर बार वही सवाल ,
तू खुश तो है न ? सब ठीक हे न ?
हाँ , अम्मा , बहुत , बहुत से भी ज़्यादा बहुत ,
सारी सुख - सुविधाओं से भरपूर ,
गहने बनवाती , हुकुम चलाती,
रानी - महरानियों सा ठसका ,
पूरे परिवार का लबालब प्यार ,
तेरी बिट्टों का चलता है राज़,
तू तो स्वर के आरोह - अवरोह को जान जाती थी ,
बिन पकड़े ही नब्ज़ का ताप जानती थी ,
अम्मा , अब क्या हुआ भूल गई क्या ?
फिर भी करती है वही सवाल ,
जानती नहीं या करती है बहाना ,
बेकार ही इतिहास का दोहराना ,
बार - बार हर बार वही सवाल ........

Thursday, August 8, 2013

याद है न

याद है न , 
जहाँ खड़े थे तुम ,
पत्तियों से झाँकता ,
बेशर्म सूरज तुम्हें ,
गलबहियाँ ले रहा था , 
हल्के परेशान तो थे ,
पर जमे रहे उसी कोने से ,
क्यों नहीं बड़े आगे ?
क्या होता ,शायद कुछ ,
हम - तुम करीब हो जाते ,
अड़ियल - टट्टू हो न ,
"मै" मे अड़े के अड़े ,
आज भी है कोना वही ,
बस एक तुम नहीं ,
सूरज भी नहीं करता अब कोई मनमानी ....

Wednesday, August 7, 2013

समय का फेर

एक समय था ,
जब इस दीवार मे ,
एक खुली खिड़की थी ,
उसमे से कभी - कभी ,
कुछ ज़िंदा साँसे झाँका करती थी ,
हल्की से नर्म बयार बहा करती थी ,
नर्म - गरम हंसी खन खनाती थी ,
पर अब नहीं ..... अब नहीं .....
पुख्ता है दीवार ,
चुन गयी है खिड़की ,
गुज़र गयी है साँसे ,
ज़हरीली है बयार ,
मुरझाई सी हंसी ,
समय का फेर .......समय का फेर ....

Saturday, August 3, 2013

चल झुट्ठा.... चल झुट्ठा ..

सुनो , याद है तुम्हें जब तुमने कहा ,
मुझे तुमसे प्यार है ...
चल , झुट्ठा -- कह मै खिखिलाई ,
नहीं , तू क्यों नहीं करती मेरा यकीन ॥
सच्ची - मुच्ची ?
अच्छा बता , गर मै न मिलूँ तो ?
तो - तो मै मर जाऊंगा ... 
और भी ज़ोर से हँसी, 
उन्मुक्त झरने से - खिल खिल ,
बकवास सब ,ऐसा ,सब होता रिसालों - किताबों मे .... 
तू एसी क्यों है , क्यों नही दिखता तुझे ,
मेरा लबलबाता प्यार ...
सुन हर बार जताना ज़रूरी है क्या ?
कह , इतराती , ठुमकती चल दी वह अलबेली नार .....
आज सुनो तुम , सात समुन्द्र - पार ,
साथ हँसता - बोलता परिवार ,
मै वही , कहती , चल झुट्ठा.... चल झुट्ठा ....

Tuesday, July 30, 2013

काश लौट आए

जनवरी की वो कड़कड़ाती ठंड,
एक नदी , एक सपाट पत्थर ,
उस पर सिमटे तुम - हम ...... 
एक छोटी सी कच्ची टपरी ,
एक चूल्हा , एक खदबदाती पतीली ,
फूँक - फूँक पीते तुम - हम ....... 
एक बर्फीली बहती ताल ,
एक नाव, एक मांझी ,
एक दूजे को समेटते तुम - हम ...... 
एक पतली , घुमावदार सड़क ,
एक ही मंजिल , एक ही सफर ,
हिचकोले लेते , गुनगुनाते तुम हम......
काश लौट आए ...

Monday, July 22, 2013

नज़र

मैने तो यूं ही कहा ,
अल्लाह का मुझ पर कर्म हे,तू जो मेरे नसीब मे हे , तब से आज तक हम ,कभी माथे ,तो कभी हाथों की लकीर ढूंढते हे ,वाह रे खुदा ये तेरी कैसी खुदाई ,हमने , खुद को खुद की नज़र लगाई .

Monday, July 15, 2013

बेटी के जन्मदिन पर

प्यारी मानसी ,
आज से ठीक इक्कीस वर्ष पूर्व तुमने हमारे जीवन को महकाया था ,
तुम्हारे आने की खुशी मे घर का हर सदस्य हर्षाया था ,
याद है आज भी मुझे वह तेरा पहला दीदार ,
मूँदीं पलकें , बंधी मुट्ठी ,लंबी अलकें,
उजला चाँद सा रूप , चाँदनी सी मुस्कान ,
तेरे पहले क्रंदन मे भी थी एक मिठास ,
आज पूरे इक्कीस वर्ष की नन्ही सी मेरी जान ,
जीवन के इस मोड पर मेरी बस यही दुआ ,
मिले हर सुख जीवन मे न टूटे कोई अरमान ,
जादू की कोई छड़ी तो नहीं मेरे पास ,
जिसे फिरा तेरे सिर हर लूँ हर संताप ,
मेरा मान है तू , मेरा अभिमान है तू ,
तेरे भीतर बसे मेरे प्राण ..... !!
शुभ आशीष
माँ

Friday, July 12, 2013

काश रोक लेती उस पल को

यूं ही चलते - चलते ,
यकायक उंगलिया टकरा गई ,
सनसनासन बिजली सी कौंध गई ..... 
सकपका कर छिटक गए ,
तुम यूं ही बादलों को घूरने लगे ,
मै बिनमतलब लट सँवारने लगी ...... 
उस दिन सिर मे दर्द था शायद ,
तुमने कहा सहला दूँ ,
सकुचती सी हल्की सी हामी ,
तुम्हारा वह कुनकुना स्पर्श,
पिघलने लगी , जा पहुंची दूर ,
जहाँ सिर्फ मै और तुम ,
न कोई हैरानी न ही परेशानी ,
न जात न पात न ही आटे -दाल का भाव ,
कब तक यूं ही दिवास्वप्न मे रही डूबी ,
धीमी सी चपत मेरे गाल पर ,
सो गई क्या पगली ....
सकपका , नहीं नहीं बस यूं ही ,
काश ... तुम बस मेरे होते ,
काश ये रिश्ते यूं न उलझे होते ,
तभी गंभीर तुम्हारा स्वर ,
याद है न कल मुझे जाना है ,
नई नौकरी का पहला दिन ,
नई जगह ,नए लोग , तुम तुम
बहुत याद आओगी ?
क्या , मै भी तुम्हें याद आऊँगा ?
टपटपाती दो जोड़ी आंखे,
ओर ठहरा - ठहरा सा समय ,
काश रोक लेती उस पल को ,
बांध लेती तुम्हें तो आज ,
वही उसी मोड पर न लगी होती ये निगाहें ...
न जाने कब से
जमी है .....वहीं की वहीं .....

Wednesday, July 10, 2013

कर गयी प्रस्थान ..

गांठ सी थी ..
गुम अपने में मग्न
या नदी सी --कलकल ... थी ,
पहेली सी - अनबुझ ...
जब तक थी महफ़िल में बातों का कारण थी 
और मरकर भी ..........!! 
न कोई मशहूर हस्ती थी न ही कोई नामचिनी खानदान ..
कमबख्त ऐसी ही थी .......
जीते जी लोंगो की जुबान पे कसैली या रसीली ..
तुर्श.......इश श श श ....चटपटी ..मजेदार .. ...
मर कर भी ..खट्टी - मीठी ....
पहली धार सी .....तीखी ...सीधे सर चढ़ कर बोले ।
आजाद ......बिन डोर पतंग .....समाज के सागर मे बिन पतवार की नैय्या .
डूबती -तैरती -उबरती -
हिचकोले -लेती ....मनमौजी लहरों पे .
आवारा - किरण सी सवार ।
बोलती कम ,हँसती ज़्यादा थी -----
धूप में मनो अभ्रक छिडकती थी !!!!
उसकी यही बेफिक्री
कईयों को खल गयी ,
भला यह भी कोई ,
जीने का अंदाज़ है ,
न चिंता - न फिकर ,
न लाज - न हया ,
न छोटो का लिहाज़ ,
न बड़ों की शर्म
उसने किया नगाड़ा बजा एक अलग ही ऐलान --------
अब सिर्फ सुनेगी,
अपने मन की .....
अब सिर्फ करेगी ,
अपने मन की ..................
और फिर .....वह उड़ने लगी ...बहने लगी..
धरती से आकाश की और ..
झंझावातों - धूलि--धूसरित बादलों से परे ....
दूर आकाश की ओर
बिजली के प्रहार से बेपरवाह ...निडर ...मजबूत ..मस्त..
....उडती ...ऊँचे ही ऊँचे ....कर गयी प्रस्थान ..

Saturday, July 6, 2013

स्मृति का खज़ाना

दिल के परदों मे जो बंद है,
स्मृति का खज़ाना ....... 
मेरा है सिर्फ मेरा ..... 
माफ करो नहीं बाँट सकती ,
खुदगर्ज़ ...स्वार्थी या मतलबी ,
जो भी कहो ...कुछ भी कहो ,
फरवरी की धूप सा ..... 
हल्का .... सौंधा ...कुनकुना ...
लपेट लेता है मुझे ,
तेरी बाहों की गर्माहट सा........

Thursday, July 4, 2013

.सबसे जुड़ी मै

वह भी मेरा हिस्सा है,
मै भी उसका किस्सा हूँ ,
जब जब होता है किसी पे वार ,
दामन मेरा भी छीज जाता है ..... 
वह लुटती है गली - गलियारों मे ,
घर का आँगन मुझे लील जाता है ,
उसकी अस्मत की हर चोट ,
मेरे सीने को करती लहूलुहान ,
माना कि मै वो नहीं पर उससे जुदा भी नहीं ,
जुड़ी हूँ तेरे से मानो तेरा ही पुर्ज़ा हूँ ,
तेरे आँसू मेरी आँखों से बरसते है ,
तेरा दर्द मेरी आहों को गहराता है ,
खंडित होती गर तू , बिखर मै भी जाती हूँ ,
नारी हूँ ..... आग हूँ ....पानी हूँ....
शक्ति हूँ ...मर्यादा हूँ .....धरा हूँ ...अवनी ...भू ....हूँ ...सबसे जुड़ी मै ............!!!

Thursday, June 27, 2013

मजनू दीवाना..

कल रात अलगनी पर लटकते चाँद को ,
गिरने से बचा लिया उसने ,
हौले से उठा हाथों मे ,
उछाल दिया आसमां मे,
चाँद बन गया आशिक उसका ,
उसकी याद मे घटने लगा ,
पर जब देखी छाप उसकी ,
जिस्म पर अपने इठला के ,
बढ़ने लगा ...... 
कहते है तब से ,
याद मे उसकी घटता औ बढ़ता है ,मजनू दीवाना..

Monday, June 10, 2013

उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़.

शीशे के किरचों पे चलती जिंदगी ,
बूंद - बूंद - तरसाती ये जिंदगी ,
कोरों से निकल ढुलकती जिंदगी ,
छोटी तो कभी सदियों सी जिंदगी ,
नाचती - नचाती देवदासी सी जिंदगी ,
न तेरी न मेरी बाजारू हुई ये जिंदगी ,
हल्का - गहरा खुमार है जिंदगी ,
तेरा नशा है मुझे जिंदगी ,
उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़..... !!!!!

Monday, June 3, 2013

यह नीली - हरी नस

यह नीली - हरी नस , 
उभर आयी ---- सर्पीली नागिन सी - 
उकेरी उन लम्हों की बिखती दास्तां ,
अपनी यादों की स्याही से ... 
यादों का क्या है,
बिन सोचे - समझे यूं ही रिस आती है ,
न देखे वक्त न औकात ,
मनमानी करती हठीले बालक -सी ,
धक्कम - धक्का , देखो कहीं कोई रह न जाए पीछे ,
हर पल तेरे साथ का सिमरन ,
ख्द्बदता रहता है दिल के कड़ाहे मे ,
अनवरत - निरंतर - लगातार -
क्रियाशील -ज्वलंत ज्वालामुखी सा ...

Friday, May 31, 2013

वे

वे 
कुछ दिनों के लिए वे खोह मे छिप जाती ,
जिस कारण चलाती थी वंश ,
उसी की वजह से अछूत बन जाती ..... 
कस - कस कर बांधी जाती थी छतियाँ ,
जिन से पालती थी कद्दावर नस्ल ,
वही बेवजह बेशर्मी बन जाती .... 
काट - छाँट कर सील दिये जाते अंग ,
उनसे ही करती पैदा अगली पीढ़ी ,
कहीं छूते ही नापाक न हो जाए ..... 
गर्दनों मे फंसाए जाते अनगिनत छल्ले ,
जो हमेशा झुकती ही रही .....
आँखों की लिपाई - पुताई काजल से ,
जिन्हे उठाने पर सज़ा ही मिली ...
होठों पे मली गई फूलों की लाली ,
पर खोलते ही जिनके फटकार ही पड़ी ............
वे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..

Monday, May 20, 2013

माँ का नाम

दरवाजे पर खट- खट ,
मुन्नू बोला कौन ?
श्रीमती लीलावती है क्या ?
जी नहीं ...... यहाँ नही कोई इस नाम से ... 
जिला बुलंदशहर , बाबूलाल की बेटी ?
नही ,कहा न यहाँ कोई नहीं ....
अच्छा - अच्छा .... सिर खुजाता अजनबी बुदबुदाया .... 
पता तो यही बताया था .... 
मुन्नू भी सोचे हाँ कुछ सुना - सुना -सा , 
तभी पीछे से माँ की आवाज़ ,
जी हाँ ! है । मेरा ही नाम है यह ।
आप कौन ?
माँ , अजनबी से कर रही बातें ,
मुन्नू मूर्खों सा सोच रहा ,
पर माँ तो माँ होती है ,
क्या उसका भी होता है कोई नाम ?
अगर है तो ...सुना क्यों नही आज तक ?
जिज्जी, बहू , ताई, चाची , बुआ ,मौसी या मामी...
कभी न सोचा माँ का नाम ,
माँ का पकड़ पल्लू ... खींच बोला......
माँ तुमने कभी क्यों नहीं बताया ?
गहरी श्वास , हल्की सी चपत ,
हमका भो कौन याद रही .....चल छोड़ अब पल्लू ...
बहुत काम रही ....
मुन्नू खड़ा अवाक......
अब से रखूँगा याद , औरों को भी कराऊँगा याद बार बार .............

Thursday, May 16, 2013

रोज़ सुबह यही होता है,


रोज़ सुबह यही होता है,
उठाने जाती हूँ उसे और ,
वह उनिदी पलकों से फुसफुसा ,
चादर उठा कहता है बस पाँच मिनिट ,
मै भी इंकार नहीं कर पाती,
बजते कुकर की सीटी को भूल ,
हौले से सरक जाती हूँ उसकी चादर मे ,
हल्का सा चुंबन उसके माथे पे ,
मीठी सी डांट , देर हो रही है ,
कस कर लपेट लेता है वह ....
डाल अपनी टांगे मेरे ऊपर ,
हम्महम्म प्लीज़ .....माँ .... थोड़ी देर और ....
क्या करूँ माँ हूँ न ... पिघल जाती हूँ....
उसकी बाहों मे सिर रख बच्ची सी बन जाती हूँ .....
रोज़ सुबह यही होता है .....   

Monday, May 6, 2013

न स्त्री न ही पुरुष

छक्का ...
हिजड़ा ....
हा हा ...ही..... ही .... 
नहीं कोई पहचान ,
न ही कोई मान ,
बस हंसने - हँसाने का सामान॥ 
न स्त्री न ही पुरुष ,
दोनों का ही समावेश ,
इसलिए हँसी का पात्र॥ 
गाना - बजाना - नाचना ,
अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना ,
काम नहीं मजबूरी है मेरी ,
अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥

Saturday, May 4, 2013

चाँद के कटोरे से

चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर,
ओक- ओक पी, जिये रात भर ,
भीगी हसरत ,खिले ख्वाब रात भर ,
उनिदी आँख , बहके अरमान रात भर ,
चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर ... 

अस्फुट स्वर , मदमाते नयन रात भर ,
घुलती रही चाँदनी आँगन रात भर ,
मखमली बोसे बरसते रहे रात भर ,
पीते रहे हम तुम ,जीते रहे रात भर , 
चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर ॥

Sunday, April 28, 2013

ऐ लड़की तू करती ????

ऐ लड़की .... तू क्या करती ?
फर्श पौंछती...माँजती बर्तन ,
कपड़े धोती ... खाती जूठन |

ऐ लड़की ... तू क्या करती ?
खुरदरी जमीं पे लेटी, गाली सुनती ,
खाती लातें औ सपने बुनती |

ऐ लड़की..... तू क्या करती ?
गाँव से बाहर , इत्ती दूर ,
भय्या का बस्ता ,बाबा की दारू ,
अम्मा की दवाई , घर का खर्चा ।

ऐ लड़की .... तू क्या करती ?
गला हड्डियाँ ,जमाती घर की नींव ,
मूक निगाह, सुनी जुबां,
ऐ लड़की तू करती ????

Saturday, April 20, 2013

छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी

छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी ,
न राजा न परी न चाँद की जुबानी ,
घंटों की लंबी यातना और यंत्रणा,
अभी तो न जाना अपने होने का मतलब ,
अभी तो फखत खेल - खिलौने की दुनिया ,
हाँ - हाँ माँ डराती कभी- कभी दाड़ी वाला बाबा ,
झोली मे बच्चे छुपा ले जाए दूर देस । 
न जाना लाड़ो घर से दूर खेल यही गली मुहाने । 
पूरे दो दिन गुड़िया कैद अपने ही घर के नीचे ,
अम्मा - बाबा रो - रो ढूँढे सारा दुनिया - जहां ।
नीचे के बंद कमरे से सुन करहाने की आवाज़ ,
अम्मा चौंकी , बापू ने की पुलिस से फरियाद ,
क्षत- विक्षत - कटी- फटी वह नन्ही सी जान ,
अब तो बस दुआ है बस बच जाए गुड़िया की जान ,
मिले सज़ा एसी पापी को फिर न पैदा कोई शेतान ॥