Wednesday, February 27, 2013

वह अलग सा कस्बा




पहाड़ी की तलहटी वाला वह कस्बा ,
बहुत अलग था , सबसे अलग ,
उस शहर के ऊपर मंडराया करती ,
तरह -तरह की विभिन्न प्रकार की चिड़ियाँ ।

उस कस्बे की सबसे ऊँची चोटी पर ,
रहता सफ़ेद - लंबी दाड़ी वाला बाबा ,
रस्यमयी - मायावी  -  चमत्कारी ,
काले से भी काले  जादू का मालिक ,
बदल दे मंत्र से किसी को कुछ भी ।

देखा है अक्सर नीले - स्यहा बदन वाली ,
हर आकार - प्रकार की औरतों को ,
शाम के झुटपुटे मे उन घुमावदार रस्तों पे चढ़ते ,
अगले दिन एक और चिड़िया की संख्या बढ़ जाती ,
मुक्त हो जाती उस दर्दनाक जिंदगी से ,
बस नहीं छोड़ पाती अपने कस्बे का मोह ,
इसलिए खुली हवा - धूप मे वहीं मंडराती ।

Monday, February 25, 2013

दो मदहोश निगाहें ...


 घर की बालकनी पर अधटंगे ,
सिगरेट का कश लगा ,
छल्लो के साथ - साथ ,
कुछ - कुछ मुझे भी फूंकते हुये ,
चाँद की ओर मुंह कर ,
एक गहरी सोच मे डूबते हुये ,
दार्शनिक मुद्रा मे शायद ,
वह मुझे ही देखता होगा .... 

उसे क्या पता ,
दूर कहीं एक पागल - सी ,
सिरफिरी लड़की , 
दुनियादारी से अनजान ,
अक्सर तपती दुपहरी मे ,
नंगे पाँव छत पर ,
पैरों को अदल - बदल ,
करती है चाँद का इंतज़ार ,
लोगों को दिखे दादी या चरखा ,
वह तो ताके दो मदहोश निगाहें ...

Sunday, February 24, 2013

कमबख्त मुझे भी हो जाता है ।♥

प्यार अक्सर गाहे - बाहे छू कर निकल जाता है,
कभी गालिब के शेरों मे या तोता - मैना के किस्सों मे ,
रफी की दिलकश आवाज़ मे या लता की सुरलहरी मे ,
गुलज़ार के रोमानी शब्दों मे या अख्तर साहब के जादुई कलाम मे ,
गुनगुनाते हुये या पढ़ते हुये ,इतना तारतम्य हो जाता है ,
प्यार होता किसी और का है , करता कोई और है ,
पर हर बार कमबख्त मुझे भी हो जाता है , 
पर हर बार कमबख्त मुझे भी हो जाता है ।♥ ♥