रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥
जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥
बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥
रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥
जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥
बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥
रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥
रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥