Thursday, October 25, 2012

पेशा है , पेशावर हूँ ......

रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ॥ 

जिन छातियों को दिखा ,
कमाती चंद सिक्के ,
उन्ही से सींचती नन्ही फसल ॥ 

बंद दरवाजों और दरीचों के पीछे 
अदा और अंदाज़ पर बिछे जाते जो ,
वही सरेआम है खुलकर थूकते ॥ 

रख ताक पर उसूल और धर्म,
नोंचते -खसोटते रहे रात भर ,
फिर भी रहे पवित्र ,औ मुफ्त बनी पापिन ॥

रोज़ रात बेचती जिस्म ,
घर मे पड़े जिस्मों के लिए ,
पेशा है , पेशावर हूँ ...... तुम सबकी तरह ॥

Monday, October 22, 2012

रावण दहन



सुना है आज रावण दहन है ,
बड़े - बड़े पुतले ,बुराई का प्रतीक ,
सजाये गए बहुत अरमान से ,
फिर जलाए गए पूरे उल्लास से ॥

मैने भी आज किया दशानन के साथ ,
अपनी अतृप्त इच्छाओं को होम ,
शृंगार कर अपनी तिरस्कृत भावनाओं का ,
और फूँक दिया उन करारों की आग मे ॥ 

नहीं , नहीं है कोई झटपटाहट ,
बस एक काँगड़ी सी है भीतर ,
जो निरंतर- सतत दहकती है ,
करती प्रज्ज्वलित - निखारती सदा ॥