Friday, January 25, 2013

क्या मै स्वतंत्र हूँ ?

दायरे - दायरे और दायरों मे दायरे ,
छोटे - बड़े , लंबे - चौड़े, गोल- चोकौर,
कहीं दिखते कहीं छिपते ,
कहीं वास्तविक कहीं काल्पनिक ,
कभी उभरते कभी झीने - झीने ,
देखो तो हर कोई सिमटा है ,
अपने - अपने दायरों के दरमियान ,
कौन है स्वतंत्र यहाँ ?
धार्मिक - सामाजिक - पारिवारिक ,
हर स्तर पर बंधा है हर कोई ,
स्वतन्त्रता एक जज्बा है ,
जो हर दिल मे सुलगता है ,
यह वो अनबुझी प्यास है ,
जिससे हर कोई झुलसता है ,
क्या मै स्वतंत्र हूँ ?
यह तो यक्ष प्रश्न है ????
?

Wednesday, January 23, 2013

बूंद - बूंद जिंदगी



माँ पानी भर - भर सुराही खरीदती थी ,
बिटिया इनमा छोटा - छोटा सुराख रहित ,
पता न कहाँ से पानी चू जाए ,
इन बेचन वारी का ,बस हमरी अंटी ढीली किए जाए ,
सुराही वाली भी बरामदे मे सुस्ताती हुई ,मुसकाए ,
हाँ - हाँ पूरा तसल्ली कर लिजो,
हम न कहीं भागे जा रहे ।
बिट्टों तो बस दोनों की नौक- झोंक का मज़ा ले रहे ,
अम्मा बिट्टों को ख़रीदारी के गुर सिखाती रही ,
संग - संग कुछ जिंदगी भी समझा रही ,
बिटिया तो मस्ती मे डूबी कुछ और ही गुनगुना रही ,
आज , बिटिया को अम्मा है बहुत याद आ रही ,
लबालब है जिंदगी ,न दिखती कोई दरार या तड़कन ,
फिर भी जाने कहाँ से रिस रही ... रिस रही !!!!!!!