Tuesday, December 20, 2011

ज़िंदगीनामा

अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर 
खुली किताब सी यह जिंदगी 
ढेरों किस्से औ कहानी,,
कुछ गम्भीर ,कुछ चुटकीले,
कुछ दुखद भीगे - भीगे ,
कुछ खुशी के खिले खिले ,
रंग - बिरंगे- स्याह -सफ़ेद पन्ने इसके ...
प्यार -गुस्सा -रूठना -मनाना,
ख्वाब -हकीकत -सच -झूठ 
विश्वास - आधार - आस्था  - संबध ,
कुछ पन्ने अब भी है अनछुए ...
कोरे - कड़क- स्याही से महके ,
कुछ हो गए ज़र्रजर - क्षत- विक्षत ,
बार - बार -लगातार उलटते - पलटते ,
कुछ की इबारत है इतनी सरल - सहज ,
समझ पाने में होती नहीं कोई अड़चन ,
कुछ हैं इतने अधिक दुरूहू -कठिन ,
कितना पटकूं सर नही आते समझ ...
जीवन के इस मध्यांतर पन्ने पे ,
अब भी लगता है जैसे अब भी हूँ ,
अपने आप से अपरिचित -अनजान,
खुद में - खुद को तलाशती - कुरेदती ,
रोज़ ही जुड़ जाता है नया कोई पन्ना ,
यही अब तक का ज़िंदगीनामा ..................