Monday, May 6, 2013

न स्त्री न ही पुरुष

छक्का ...
हिजड़ा ....
हा हा ...ही..... ही .... 
नहीं कोई पहचान ,
न ही कोई मान ,
बस हंसने - हँसाने का सामान॥ 
न स्त्री न ही पुरुष ,
दोनों का ही समावेश ,
इसलिए हँसी का पात्र॥ 
गाना - बजाना - नाचना ,
अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना ,
काम नहीं मजबूरी है मेरी ,
अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥