छक्का ...
हिजड़ा ....
हा हा ...ही..... ही ....
नहीं कोई पहचान ,
न ही कोई मान ,
बस हंसने - हँसाने का सामान॥
न स्त्री न ही पुरुष ,
दोनों का ही समावेश ,
इसलिए हँसी का पात्र॥
गाना - बजाना - नाचना ,
अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना ,
काम नहीं मजबूरी है मेरी ,
अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥
हिजड़ा ....
हा हा ...ही..... ही ....
नहीं कोई पहचान ,
न ही कोई मान ,
बस हंसने - हँसाने का सामान॥
न स्त्री न ही पुरुष ,
दोनों का ही समावेश ,
इसलिए हँसी का पात्र॥
गाना - बजाना - नाचना ,
अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना ,
काम नहीं मजबूरी है मेरी ,
अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥