Tuesday, December 18, 2012

माफ करिए आज भाषा पर नियंत्रण नहीं रहा ....


या खुदा !
आज अपने मादा होने पे ,
जी दुखता है।
हे प्रभु !
आज बेटी जनने से ,
मन सुलगता है ।
क्यूँ नहीं बनाया ,
मच्छर -मक्खी या अदना सा कीड़ा ।
बर्बरता का देख तमाशा ,
अपने पैदा होने पे ह्रदय कलपता है ।
कब तक यूँ ही रहूँ मुँह छिपा ,
और अधिक ढकूँ अपने को ,
जनांगों पर लगा ताला ,
घिस डालूँ ये उभार ?
कर नारेबाजी दिलवा दूँ कोई सज़ा ?
पर क्या यह अश्लीलता यहीं रुक जाएगी ?
मिली सज़ा जो किसी एक को तो ,
क्या यह ,बर्बरता रुक पाएगी ?
जिस चौराहे फेंका मुझे ,
वहीं दिया जाए उल्टा टांग ,
हर आने -जाने वाला करे ,
लोहे के सरिये से तुम्हारे ,
मर्दाना अंगों पे वार पे वार ,
बूंद- बूंद , रिस - रिस मारो तुम ,
तभी होगा समाज का पूर्नउद्धार....
मेरी रूह ...आत्मा.... अस्मिता ..का व्यक्तिकरण....पुनर्जन्म...

Monday, December 17, 2012

काश तुम दूर न होते

काश तुम दूर न होते ,
काश यह मौसम इतना खुशगवार न होता ,
देखो न आसमान से मधू है रहा झर,
काश मेरी ओक से तुम घूंट - घूंट पीते ,
मदहोशी के इस आलम मे एक-दूजे मे खोते,
काश तुम आस- पास होते । 
देखो न सुबह की बनी चाय ,
कब से पड़ी कोने मे कड़वी है हो गयी ,
बदरी भी बरस बरस कारी सी हो गयी ,
रस्ते खड़े पेड़ झूम-झूम सो गए ,
तेरी राह मे बिछे नैन कब के खो गए ,
काश तुम दूर न होते ,
काश तुम आस- पास होते ....

Sunday, December 16, 2012

काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ


काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है...इश्क हूँ...इश्क करती हूँ ।
न मंदिर ,न मस्जिद न गिरजे मे इबादत ,
हर सूं बस तुझे देखती हूँ ॥
काफ़िर हूँ कुफ़्र बोलती हूँ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ....
तू ही गीता ,कुरान औ पुराण मेरा ,
तुझे ही पढ़ती,गुनती, रटती हूँ॥
काफ़िर हूँ ,कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥ 
तू ही मेरी पुजा , इबादत मेरी ,
श्लोक कहो या आयात ,
तुझे ही हरदम सुनती हूँ ,
काफ़िर हूँ , कुफ़्र बोलती हूँ ,
इश्क है , इश्क हूँ, इश्क करती हूँ ॥