Sunday, March 6, 2011

बीते पल

बीते पल
अपने मन के आंगन में गाड़े हैं ,
समय से चुराए कुछ अपने पल |
रोज़ सुबह - शाम सींचती हूँ ,
अपनी हसीन  यादों के झरने से |
वक़्त - बेवक्त यह बेल फल जाती है ,
चुन कर उन गुलाबी फूलों को ,
सजा लेती हूँ अपने हृदय के घरोंदे को |
सुवासित हो जाता है मेरे दिल का आंगन ,
तुम्हारे आस - पास होने की महक से |
निगाहें  ढुंढने अब इधर - उधर नहीं जाती हैं ,
तुम्हारी ख़ुशबू अब मेरे बदन से आती है |