उमड़ा, गरजा , बरस गया ...
अबके सावन भी गुजर गया ..
न गुनगुनायी आंगन मे भोर ..
न उठा झूले का शोर ..
न गोरी सजी ,
न पायल बजी ,
न चूमा माथा ,
न मिला आशीष,
न केश बिखरे ,
न नाइन के नखरे ,
न महका घेवर ,
न तले अंदरसे ,
न बाबुल का संदेसा ,
न भाई का इंतजार ,
अबके सावन भी गुजर गया .....
अबके सावन भी गुजर गया ..
न गुनगुनायी आंगन मे भोर ..
न उठा झूले का शोर ..
न गोरी सजी ,
न पायल बजी ,
न चूमा माथा ,
न मिला आशीष,
न केश बिखरे ,
न नाइन के नखरे ,
न महका घेवर ,
न तले अंदरसे ,
न बाबुल का संदेसा ,
न भाई का इंतजार ,
अबके सावन भी गुजर गया .....