Friday, May 11, 2012

don 't worry

खिड़की से छन- छन चांदनी झरती रही --- नहलाती हर कोपी- किताब -- कलम और उस बिन मूठ-- टूटे कप को -------लेने लगी आकार तरह तरह की तस्वीरें दिवार पे ---- वह दरमियानी तुम्हारी हंसी --- मेरी चोटी खीँच कहना मोटी--- मेरा झूट मूठ का झिकना -- तुम्हारा बिनबात के मानना --- वह खुशबू अभी भी मेरे बालों मे महकती है ----बन करूं पलकों के दरिन्चों को तो ---एक रेशमी अहसास तेरा लपेट लेता है --- कितनी रोई थी मै याद है जब --अचानक पीछे से "धप्पा' कह तुम हँसे थे -----गर्म गर्म चाय गिरी मेरी हथेली पे-- घंटों अपने हाथों में ले सहलाई थी--- देखो अब भी तुम्हारा स्पर्श बाकी है इन लकीरों में -----उस दिन कितनी बारिश थी -- मद्धिम सी पनीली आवाज़ में जब मैने कहा --आज यही रुक जाओ ------ तुमने पल भर जो देखा मेरी और --- उन गहरी - सवाली आँखों मे जाने क्या था की --- भीग गयी पूरी की पूरी --सूखे बरामदे में ----हल्के से सर झटक तोड़ी गुलाबी मदहोशी तुमने -- नहीं आज नहीं फिर कभी --------आज भी इंतजार है उस पल का ----- आज भी तुम्हारे कदमों की निशान बाकी है सीढियों के नीचे जहाँ तुमने कहा था --- don 't worry दूसरा ला दूंगा-------continue..............

Tuesday, May 8, 2012

-टूटा कप-

यह न कहानी है न किस्सा है ---- मेरे दिल का टूटा हुआ एक  हिस्सा है----घंटों बतियाते बरामदे की सीढ़ी पर बैठे ---- चाय के अनगिनत प्याले यूँ ही गटक जाते थे ---- वह मेरा favourit वह नीला कप ---जिस पर था एक बड़ा सा smily --- मुझे चिड़ाने की खातिर पहले ही लपक  लेते थे ---- तुम हमेशा उस आखिरी सीढ़ी पे ही बैठा करते थे --जब पूछा तो बोले, क्या करूँ  ऊंट सी लम्बी टांगे कहाँ ले जाऊ ----- और मैं हमेशा पहली सीढ़ी पे ---तुमने पूछा नहीं क्यों ---- धूप की किरण जब पत्तों से छन तुम्हारी गर्दन पर गिरती --- वह काला तिल ----दिल का आकार ले लेता था ---- एक किताब हमेशा रहती थी तुम्हारे साथ-- उसे पलटते हुए वही अधलेटे तुम कही खो जाते थे --- कितनी जलन होती थी मुझे उस मुई किताब से --- पर यह क्या पता वह तो बहाना था तुम्हारा वक़्त बिताने का ---- याद है उस दिन जब तुम कहने आए थे -- आज तुम्हारा Interview है ---कितना खुश थे तुम --- अचानक उठते हुए टल्ला लग  कप टूट गया ---- ओह !!! सॉरी यह तुम्हारा  favourit था--- don 't worry ऐसा ही दूसरा जल्दी ला दूंगा -----जाने दो कप ही तो है --- आज भी वह कप -- मेरी मेज़ पर रखा है-- बिन हत्थे का----टूटा ---बिन मूठ-------

Monday, May 7, 2012

प्रबल प्रेम

साहिल किनारे ..
चट्टान तले..
घुटनों मे दबाये ठुड्डी ..
बैठी वह ताक रही ..
दूर-- दूर तक 
फैला अनंत विस्तार ..........
सुर्ख सूरज की लाली ,
फैली लहरों के गालों पे ,
उचक - उचक हर लहर दीवानी ,
प्रेमी आकाश को चूमने को बेताब ....
अनुरागी नभ भी ,
छोड़ अपनी भव्यता ,
झुकने को तैयार 
सोचे वह ...
किसका है प्रेम प्रबल ....
यह झुकता असमान 
या लहरों का याचक गान ........

Sunday, May 6, 2012

राह जो

राह जो 
 है यह .....
तेरे - मेरे बीच ....
...जो......
लाती है ...
....तुझे.....
मेरे   करीब ....
...यही....
................दूर......
भी ले जाती हैं।...................
एक       माध्यम ..........
बस...................
तेरे होने या न  होने  का  ........!!!!!!!!!!!!