Saturday, July 7, 2012

पानी की बूंदे





सुबह - सुबह पत्तों से टपकती - पानी की बूंदे ,
क्या बरसी थी चांदनी ?
या इसके साये तले,
जड़ों सी चिपकी ,
वो देखो मासूम - 
नन्ही- सी  जान ,
रात भर - घुटनों को मोड़े ,
पेट को भींचे ,
सांस को खींचे ,
सुबक - सुबक ,
अनमनी - सी ,
भूखी थी सोयी ,
रात भर --- फूट - फूट पाती भी रोई .....!!

Thursday, July 5, 2012

.प्रस्थान ........!!!!!!!!!!!!!



क्या ?...कब? ....पर ..कैसे ?...मगर  मैने तो.......ओ हो...अच्छा - अच्छा ..पर ऐसे कैसे ..? ...हाँ ..हो सकता है ...नहीं पर पिछले हफ्ते माल के बाहर .....च .च ..च....चलो अच्छा ही हुआ ....नहीं जी बड़ा बुरा हुआ .....क्या कह रहे हैं ?....देखा था ..कब ..?...किसके साथ ...अकेले ...शायद ..मेरी भतीजी ने....कहाँ ?..

जितने लोग ,उतनी बातें ....आतुरता ...जिज्ञासा ...उत्सुकता ...तेवर ...आवेश...अवशता ..छटपटाहट ...रोष ....सुगबुगाहट .....व्याकुलता ......मानो  उसके जाने की खबर , बिन पूछा --बिनबताया राजा  का फरमान । रातोंरात  हो बिन बिगुल  जंग  का जैसे ऐलान  । दुश्मन का घुप्प अँधेरे में छुप कर किया वार । ..

गांठ सी थी ...गुम  अपने में मग्न या नदी सी --कलकल ... थी  पहेली सी - अनबुझ ...जब तक थी महफ़िल में बातों  का कारण थी । और मरकर भी ..........!! ..न कोई मशहूर हस्ती थी न ही कोई नामचिनी खानदान ......कमबख्त ऐसी ही थी .........जीते जी लोंगो की जुबान पे कसैली या रसीली ..!....तुर्श.......इश श श श ....चटपटी ..मजेदार .. ....मर कर भी ..खट्टी - मीठी ....पहली धार सी .....तीखी ...सीधे सर चढ़ कर बोले ।

आजाद ......बिन डोर पतंग .....समाज के सागर मे बिन पतवार की नैय्या ....डूबती -तैरती -उबरती -
हिचकोले -लेती ....मनमौजी लहरों पे ..आवारा - किरण सी सवार ।
                         बोलती कम ,हँसती ज़्यादा थी -----
                         धूप में मनो अभ्रक छिडकती थी !!!!


   उसकी यही बेफिक्री
    कईयों को खल गयी ,
     भला यह भी कोई ,
     जीने का अंदाज़ है ,
      न चिंता - न फिकर ,
     न लाज - न हया  ,
     न छोटो का लिहाज़ ,
     न बड़ों की शर्म ,


उसकी मौत गूंगा कर गयी कइयों को .....अब कोसेंगे किसे और गलियाएंगे किसे ? ..न किस्से --न चुगली ....न बेसिरपैर की बाते ...अब कैसे उड़ायेंगे फ़िज़ूल की अवफाहें .........मुई जिंदगी का रस ही ले गयी ।

पर उसने किया नगाड़ा बजा एक अलग ही ऐलान --------
           अब सिर्फ सुनेगी,
           अपने मन की .....
           अब सिर्फ करेगी ,
           अपने मन की ..................

और फिर .....वह उड़ने लगी ...बहने लगी....धरती से आकाश की और ...झंझावातों - धूलि--धूसरित बादलों से परे .....दूर आकाश की और ।...बिजली के प्रहार से बेपरवाह ...निडर ...मजबूत ..मस्त...उडती ...ऊँचे ही ऊँचे ....कर गयी प्रस्थान ........
   

 
     ( चित्र गूगल आभार )
         
                           



Tuesday, July 3, 2012

बोतल बंद प्यार


यूँ ही टहलते - टहलते ,
एक दिन सागर किनारे ,
पाई उसने पारदर्शी बोतल अनायास ,
एक पीला -मटमैला ख़त था बेनाम ,
लिखा था --------
" अमिट यह प्यार ,तेरे नाम " ..
आज तक संजों रखी  ,
वह जीर्ण -शीर्ण पुर्जी ,
 उसपे फीकी - दबी सी इबारत ,
और न जाने क्यूँ तबसे कर बैठी,
 वह --
बोतल बंद प्यार .....