Thursday, August 8, 2013

याद है न

याद है न , 
जहाँ खड़े थे तुम ,
पत्तियों से झाँकता ,
बेशर्म सूरज तुम्हें ,
गलबहियाँ ले रहा था , 
हल्के परेशान तो थे ,
पर जमे रहे उसी कोने से ,
क्यों नहीं बड़े आगे ?
क्या होता ,शायद कुछ ,
हम - तुम करीब हो जाते ,
अड़ियल - टट्टू हो न ,
"मै" मे अड़े के अड़े ,
आज भी है कोना वही ,
बस एक तुम नहीं ,
सूरज भी नहीं करता अब कोई मनमानी ....

Wednesday, August 7, 2013

समय का फेर

एक समय था ,
जब इस दीवार मे ,
एक खुली खिड़की थी ,
उसमे से कभी - कभी ,
कुछ ज़िंदा साँसे झाँका करती थी ,
हल्की से नर्म बयार बहा करती थी ,
नर्म - गरम हंसी खन खनाती थी ,
पर अब नहीं ..... अब नहीं .....
पुख्ता है दीवार ,
चुन गयी है खिड़की ,
गुज़र गयी है साँसे ,
ज़हरीली है बयार ,
मुरझाई सी हंसी ,
समय का फेर .......समय का फेर ....