उम्र है आठ , बच्चे है सात ,
माँ जाए तो क्या ,
जननी तो वही है उनकी ,
जनते ही भूले जनक ,
माता को मिली न फुरसत जो ,
दुलारती- पुचकारती - लढ़ीयाती उसे ,
इन सभी कमियों को ,
पूरी ईमानदारी से पूरा कर रही ,
यह बुजुर्गुया नन्ही सी जान ।
जो नहीं मिला खुद को कभी,
बाँट रही फिर भी बाकियों को भरपूर ,
मातृत्व के बोझ से दबी,
चिथड़ों मे लिपटी ,
चिथड़ों को संभालती ,
उम्र है आठ , लगती है साठ.....