Wednesday, April 3, 2013

आज भी बिछी है वहीं की वहीं

कमरे की रेतीली दीवार से खा रगड़ ,
वह औरत छीलती रही पल - पल ,
नर्म प्यार के अहसास फूट गए फफोले से ,
बह चल पीला - मवाद मर्यादा का ,
रेंगने लगा बदन पर बोझ समाज का ,
कहाँ रहा फिर अपना मन अपना ,
बंट गया , खंडित -खंडित हिस्सों मे ,
इतनी ढेर सी कीरेंचे की बटोर भी न पाई ,
और भी ज़्यादा बिखरती चली गई , 
न समाई धरती मे न ही डूब सकी ,
धूल सी उड़ छा गई तेरे वजूद पे ,
कितना भी पोंछों फिर भी चमकती है,
मेज़ - कुर्सी तुम्हारी तिपाई पे ,
नहीं छोड़ सकी मोह तेरे आँगन का ,
आज भी बिछी है वहीं की वहीं ॥

Monday, April 1, 2013

रंग प्यार का

क्या हर चीज़ का रंग होता है ?
अगर होता है तो कैसा होता ,
तुम्हारी याद का ,
बात का ,
मुलाक़ात का ,
हंसी का ,
गुलाबी ,पीला , नीला , हरा, नारंगी 
चितकबरा या सफ़ेद ?
कौन सा रंग चुनती ,
उस बिन छुई छुअन का ,
बिन कही दास्तां का ,
मौन के महाकाव्य का ,
कौन सा ? कौन सा ?

हुई आहट या हल्का सा खटका ,
यह तुम हो या कहीं कोई आँसू टपका ,
खिड़की पर हिला वो जो हल्के से पर्दा ,
सुनो फ़ैली हवा मे यह तेरी महक ,
यह तुम हो या मन का वहम,
हर खट- खट - पदचाप अनजानी सी ,
नहीं तू कहीं फिर भी क्यों हर बात पहचानी सी ...
कहा तुमने कि रंग है सफेद प्यार का ,
तो क्यों दिखता है पीला धब्बा वक़्त का ?
कोने पे वो छींटे लाल याद के ,
मटमैला कहीं कहीं उस इंतज़ार का ,
झूठे निकले तेरे बिन कहे वादे ,
या कहूँ कि सच था वह मौन का संवाद ......?