Friday, December 10, 2010

Zindgi

जिंदा हूँ मगर , जिंदगी ढूनढती हूँ |
हैवानों के शहर में , इंसानों को ढूनढती   हूँ |
सोने - चाँदी के बाज़ार मे फूलों को ढूनढती   हूँ |
बंद घुटती दीवारों में , खुला आकाश ढूनढती   हूँ |
काली - भयावह रात में , रोशनी की रसधार ढूनढती   हूँ |
बनावटी - खोखली हंसी में , मासूम मुस्कराहट को ढूनढती   हूँ |
आधे - अधूरे शब्दों में , संवाद को ढूनढती   हूँ |
रुखी - सुखी इस जिंदगी में , प्यार का दीदार ढूनढती   हूँ |

Monday, December 6, 2010

Shabd

शब्दों का माया जाल ..
रंगहीन ,
गंधहीन ,
 सम्वेदेन्हीन ,
शब्द कोरे शब्द .....
खोखले ,
बनावटी ,
मटमैले ,
पन्नों पर बिखरे - बिखरे ...
हवा में तिरते - तिरते ,
सर्पीली गुंजलिका से ,
शब्द ही शब्द ........
मेरे होठों से ,
तुम्हारे कानों तक ,
रूप बदलते ....
कलम की स्याही से ,
दिल की गहराई तक ,
अर्थ बदलते .....
शब्द ........शब्द ........ आधे ...अधूरे |

Sunday, December 5, 2010

meri pachaan

मैं तो हूँ मस्त बयार , बांधने की तुम्हारी कोशिश  है बेकार |
यह भटकन - अटकन -उलझन,  ही तो है मेरी पहचान |
निर्द्वंद , अबाध , बहती ,...
निर्मल , शीतल , सुगन्धित ...
प्यार और त्रास भी ...
प्यास और पानी भी ..
जीत भी और हार भी ...
सवाल भी और जवाब भी ...
मैं तो हूँ मस्त बयार , बांधने की तुम्हारी कोशिश है बेकार ........|