Saturday, September 8, 2012

scene 1-2-3

--- सीन वन ---
सुबह - शाम गली के नुक्कड़ पर,
पानी की लंबी कतार,
आ गया .... आ गया का शोर ,
मच गया घमासान ,
जल्दी करो , पूरा दिन यहीं नहीं बिताना ,
कमज़ात -- हरामखोर -- छिनाल ,
और न जाने क्या क्या का आदान प्रदान ,
बन गया कुरुक्षेत्र ,मच गयी मारकाट ,
लड़ गया आज का हर अभिमन्यु ......

- सीन टू---- 

चलो निकालो किताब ,
सुनाओ कल का पाठ ,
हल करो सवाल ,
रटो व्याकरण ,
लिखो बेमतलबी परिभाषाएँ ,
नापो धरती से समुन्द्र ,
हाथ उठाओ वरना मुर्गा जाओ बन,
समझ मे आए या नहीं ,
दो परीक्षा ,लाओ अव्वल दर्ज़ा ,
पाठ्यक्रम के कुरुक्षेत्र मे ,
भागो आज के अभिमन्यु ..... 

--- सीन थ्री --- 

कोरपरेट दुनिया,
अंधी दौड़,
कुचल एक -दूजे को ,
दिखा नीचा ,
बेच ईमानदारी ,
नंगी महफिले ,
थिरकते जाम ,
सदाचार जला ,
विदशी यात्रा का हो इंतज़ाम ,
जालसाज़ी -ढोंग के कुरुक्षेत्र मे ,
नाच आज के अभिमन्यु ....

Wednesday, September 5, 2012

" आज का अभिमन्यु

 मुँह अंधेरे उठ ,
बसी रोटी पानी से गटक ,
चल हो लोकल मे सवार,
लटक पायदान से ,
बच सिग्नल से ,
कूद अपने गंतव्य पे ,
भाग पहुँच सेठ के ,
दिन भर खून बहा ,
दिन ढले फिर भाग, पकड़ लोकल ,
रास्ते मे बनिए की दुकान का हिसाब ,
भर बची-खुची बासी तरकारी ,
पीली पड़ी पत्नी को ,
पकड़ा पैबन्द लगा थैला,
सुन दो -चार अर्थहीन बातें ,
दे तीन - चार तू भी घूंसे - लात,
मुन्ने - मुन्नी को झिड़क ,
खोल देसी और उतार दिनभर ,
की अपनी झींक .....
देख शेखचिल्ली से ख्वाब ,
बना हवा मे महल ,
डुबो के मोटी रोटी ,
पनीली- फीकी सी दाल मे ,
झूलती खटिया पे ,
ओढ़ थेगली, बुन नींद ,
कल, फिर से कर शुरू ,
वही सब जो किया था आज ,
जीवन की महाभारत मे ,
दिनभर के चक्र का ---- " आज का अभिमन्यु" है तू ....

Sunday, September 2, 2012

औरत जात

अव्वल दर्जा , सुंदर रंग -रूप , 
घर - बाहर का तालमेल ,
चक्र घिन्नी से बंधे पाँव ,
नहीं कम किसी से पर ,
फिर भी क्यों सुनना पड़ता है ,
साबित करो...

अपनी कोख को खुद ही बांधा,
मेरा खुद का निर्णय ,
मुझे है स्वीकार ,
फिर भी सुनना पड़ता है ,
खुदगर्ज़....

जो खोया मैने, 
मेरा था ,किसी अन्य को हो, क्यों कर एतराज़ ,
हाँ - हाँ भरने चाहे सपनों मे रंग ,
न थी कमी मेरी उड़ान मे ,
न थी पंखों की ताकत कम ,
पर जब भी छूना चाहा आकाश ,
सुनना पड़ा हर बार ,बार -बार,
... औरत जात......!!!