Saturday, September 24, 2011

shai rup

कभी पूजा देवी के रूप में ,
कभी दुत्कार दासी के रूप में ,
इस ऊँच - नीच के मध्य झूलते ....
सहधर्मिणी का रूप न दे सके |
परेशान खींसे निपोरते इधर - उधर झाँकते..
कोरा नाटक
भोथरा छल
झूठा  प्रपंच
वास्तव में समानता कभी मान ही नहीं सके |
त्रिशंकु से
अपने में ही उलझे ...
मेरे हर रूप को माना मेरे धर्म ..मेरा फ़र्ज़...मेरा कर्तव्य ...
हाँ , मैं माँ हूँ ...
अथक पीड़ा के उपरांत किया सर्जन ..
हाँ , मैं बहन हूँ ...
सूनी कलाई सजा , घर   को बनाया  चमन ..
हाँ , मैं बेटी हूँ ...
नमकीन शरारतों से महकाया तेरा मन ...
हाँ , मैं पत्नी हूँ.....
एक आस - विश्वास पर छोड़ा  बाबुल का आंगन ....
हाँ , मैं वो सब हूँ , जैसा तुमने चाहा ,
कभी करो मेरी चाहत,
पर भी गौर .....
व्यर्थ ही नहीं मचाते हम शोर.........

Friday, September 23, 2011

Bisat

जिंदगी की बिसात पर ,
मोहरे से हम ..
एक घर मैं चली ,
ढाई घर चले तुम ...

Monday, September 19, 2011

साथ - साथ

पाप - पुण्य,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ , एक साथ .....
धोने को ,
या 
कमाने को ....
मकसद चाहे जो भी हो ,
डुबकी तो दोनों ,
लगाते हैं साथ - साथ .....
हर - हर गंगे , हर - हर गंगे ,
बुद - बुदाते धीमे - धीमे ...
शांत - मौन मन ही मन ...
चीखते - चिल्लाते शोर ही शोर ...
पाप - पुण्य ,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ ....एक साथ ....!