Monday, September 19, 2011

साथ - साथ

पाप - पुण्य,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ , एक साथ .....
धोने को ,
या 
कमाने को ....
मकसद चाहे जो भी हो ,
डुबकी तो दोनों ,
लगाते हैं साथ - साथ .....
हर - हर गंगे , हर - हर गंगे ,
बुद - बुदाते धीमे - धीमे ...
शांत - मौन मन ही मन ...
चीखते - चिल्लाते शोर ही शोर ...
पाप - पुण्य ,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ ....एक साथ ....!


6 comments:

  1. लगाते तो हैं साथ ही डूबकी , इस संसार में भी साथ .... पर वही बात है, मानस का हँस असली मोती ही चुनता है

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

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  3. वाह.......और अथाह गंगा सब समेट लेती है अपने भीतर......कुछ अलग.....बहुत पसंद आई पोस्ट|

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  4. गंगा जी की यही तो खासियत है .. स्वीकार कर लेती हैं सब को निर्विकार रूप से ...

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  5. आपकी इस सुन्दर रचना की प्रसंशा करने की
    कोशिश में एक नई रचना का जन्म हो गया है....
    समर्पित आपको......



    जिन्दगी के इस
    उतार-चढ़ाव में भी
    रहते हैं दोनों साथ-साथ....
    कभी-कभी मौन,
    तो कभी कुछ बुदबुदाते,
    कुछ चीखते-चिल्लाते...
    बहे चले जा रहे हैं
    एक-दूसरे का
    हाथ पकड़े हुए
    जोर से..
    छोड़ने की चाह में
    बंधन और कसता जाता है...
    कुछ है जो उन्हें एक-दूसरे से
    जुदा नहीं होने दे रहा है...!
    दोनों ही समर्पित खुद को,
    साथ-साथ एक-दूसरे को भी,
    विपरीत का बंधन भी
    आकर्षण से कम नहीं...!

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