Monday, October 8, 2012

माँ तेरी जैसी


सब कहते हैं मैं तेरी तरह दिखती हूँ ,
तेरी तरह हँसती और रोती हूँ |
सुन कर गौरवान्वित हो जाती हूँ ,
पर माँ मेरी रोटी, तेरी तरह नहीं बनती ,
जैसी बनाती है तू ,नर्म - नर्म - गोल ,
पतली - करारी और ढेर सारा घी ,
मेरी रोटी वैसी क्यों नहीं बनती ......|
उबली दाल में वह हींग- जीरे का छौंक,
उसकी महक से ही भूख जाये लहक ,
माँ मेरी दाल से वह महक क्यों नहीं आती ...|
बासी रोटी की चूरी और खूब  सारी शक्कर ,
छाछ भरे ग्लास में तैरता ढेला भर मक्खन ,
माँ मेरी चूरी में शक्कर ठीक से क्यों  नहीं पड़ती ..|
टिफिन में परांठा और आम के आचार की फांक ,
जीभ को तुर्श कर जाये वह मीठी सी - खटास ,
माँ मेरी आचार की फांक में वह खटास क्यों नहीं आती ..|
स्टील के बड़े ग्लास में गर्म - गर्म  दूध की भाप ,
उस पर तैरती मोटी - गाढ़ी मलाई की परत ,
माँ मेरे दूध में वैसी  परत क्यों नहीं पड़ती ...|
जब मैं हूँ तेरी जैसी माँ......! 
 तो मेरी रोटी तेरी जैसी क्यों नहीं बनती ...???

Thursday, October 4, 2012

मेरा ताजमहल


राधिया आज बड़ी ही खुस थी ,
ब्याह की बात है चल रही ,
सुना है तेरा वो ,
रहता है सहर मा,
तेरी तो मौज ही मौज है ,
ऊंची - ऊंची बिल्डिंग ,
लंबी - चौड़ी सड़कें ,
तेज दौड़ती मोटर - कार ,
तू तो हम सबका भूल जाएगी ॥ 
अरे , आएसा का क़हत हो ,
तुम लोग सब भी आना ,
घूमेगे - फिरेंगे , एस करेंगे ,
और का ...फिस्स से हँस दी ,
मन ही मन ताजमहल बुन रही थी ॥ 
ठूंस - ठांस , धँसती जब पहुँची,
घसटती सी , मारे बदबू फटी नाक ,
गंदगी का ढेर , नंग - धड़ंग बच्चे ,
गाली- गलौज और दमघोंटू हवा ,
ये कहाँ ले आया , गोपाला मुझे ॥
कहाँ गयी वो सपनों की बातें ,
लाज औ संकोच से धीरे से बुदबुदाई ,
यही है का मुंबई नागरी ,
हम तो कछु और ही सुने थे ,
अपना गाँव के सामने तो कुछ भी नहीं ॥ 
पगली ,यही है अब सपने की नगरी,
वो देख सामने तेरा ताज ,
मै शाहजहाँ ,तू मेरी मुमताज़ ,
टेड़े - मेड़े - आड़े- तिरछे ,
फट्टों की दीवार पर ,
टीन की फड़फाड़ती छत ,
मुस्कराई और बोली 
अब से यही है मेरे सपनों का ताजमहल ,
तू मेरा शाहजहाँ , मै तेरी मुमताज़ ...

Tuesday, October 2, 2012

Sunday, September 30, 2012

सपनों का ताजमहल



अम्मा - अम्मा हम भी देखेंगे ताज ,
आज पढ़ा हमने कक्षा मे पाठ ,
दुनिया मे मशहूर अजूबा है,
बनवाया था राजा ने ,
करता था अपनी रानी को ,

बेहिन्तहा- बेपनाह प्यार ॥
अम्मा , सकपकाई ,
दाल मे और पानी मिलती, बोली ,
हाँ - हाँ , आने दे बापू को ज़रा ,
वक़्त देख करूंगी बात ॥ 
मुन्ना खुशी से गया झूम ,
पी गया सपर - सपर,
पनीली - सी फीकी दाल ॥
रात भर देखे सपने मे ताज ,
सुबह उठ ,भागा - अम्मा के पास ,
सूजी आँख , नीला शरीर देख ,
सहम गया , धीरे से बोला ,
अम्मा ,नहीं देखना हमको कोई ताज ,
कल देखा था सपने मे ,
लगा नही कुछ खास ,
पता नहीं लोगो को ,
कैसा है भूत सवार,
जीते जी तू पूछे नहीं ,

मरते ही करने लगते है प्यार ॥

Friday, September 28, 2012

शकुंतला सा ही रहा होगा प्यार मेरा



शकुंतला सा ही रहा होगा प्यार मेरा ,
तभी तो दुष्यंत सा तू भूल गया ..
नहीं दिखाने को कोई भी निशानी ,
जो तूने कभी छोड़ी ही नहीं ...

क्या दिखाती तुझे ,
पलकों पर ठहरे सपने ,
याद है मिल कर ही देखे थे ...

हवा में तैरते बोसे ,
छिप -छुपा तू ने ही बरसाए ,
याद है न वह मीठी शरारते ..

वो मन की चादर पे ,
तेरे स्पर्श की लकीरें ,
याद है न अनजाने ही छूट गयी तुझ से ...

ऐसा क्या है जो ,
फिर से वही वक़्त वापस दिला दे ,
बांध मुट्ठी मे चाँद , करे चांदनी  से बातें ,
न तुझे  कोई जल्दी न मुझ पे कोई पाबन्दी ....


Wednesday, September 26, 2012

तुम्हारी याद

जब भी सोचती हूँ तुम्हें ,
उभर आता है नीला आकाश ,
ऊँची - ऊँची चोटियाँ,
कल - कल बहती नदी ,
लम्बे - घने पेड़ ,
काली- स्यहा चट्टानें ,
और 
एक पुराना मंदिर |
जहाँ बरसों से ,
कोई दिया न जला ,
परिंदा न गया ,
न घंटी, न धूप |
आओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |

Monday, September 24, 2012

यूं ही करूँ छेड़- छाड़

तुझे तो ढंग से रूठना भी नहीं आता ,
होंठ कुछ और आंखे कुछ और ही बयां करती है॥ ---- ----- ---- ------ ---जा - जा पहले सीख के आ हुनर मनाने का ,मै भी फिर रूठना सीख लूँगी ॥------- ------- ----- ----- मुझसे न होवे यह मान मनोव्वल की बतिया ,मिलना हो तो मिल वरना हो चली रतिया ॥ ----- ---- ----- ----- ----- ---- ---- कितना निष्ठुर - निर्मम है रे तेरा मन ,मै ही ठहरी नादां ,जो करूँ तोसे मिलन की आस ॥
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हाय! तू क्या जाने बावरी कसक म्हारे जिया की ,
बिलखे - तड़पे थारे वास्ते दिन रात ॥
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अच्छा जी ! फिर काहे न करे है जतन ,
न ही करे प्रेम- मोहब्बत की बात ॥
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जब तमक जावे है तू ,चमके तोरे गाल ,
कितती प्यारी लागे है , इसलिए
 
यूं ही करूँ छेड़- छाड़ ॥