Saturday, July 6, 2013

स्मृति का खज़ाना

दिल के परदों मे जो बंद है,
स्मृति का खज़ाना ....... 
मेरा है सिर्फ मेरा ..... 
माफ करो नहीं बाँट सकती ,
खुदगर्ज़ ...स्वार्थी या मतलबी ,
जो भी कहो ...कुछ भी कहो ,
फरवरी की धूप सा ..... 
हल्का .... सौंधा ...कुनकुना ...
लपेट लेता है मुझे ,
तेरी बाहों की गर्माहट सा........

Thursday, July 4, 2013

.सबसे जुड़ी मै

वह भी मेरा हिस्सा है,
मै भी उसका किस्सा हूँ ,
जब जब होता है किसी पे वार ,
दामन मेरा भी छीज जाता है ..... 
वह लुटती है गली - गलियारों मे ,
घर का आँगन मुझे लील जाता है ,
उसकी अस्मत की हर चोट ,
मेरे सीने को करती लहूलुहान ,
माना कि मै वो नहीं पर उससे जुदा भी नहीं ,
जुड़ी हूँ तेरे से मानो तेरा ही पुर्ज़ा हूँ ,
तेरे आँसू मेरी आँखों से बरसते है ,
तेरा दर्द मेरी आहों को गहराता है ,
खंडित होती गर तू , बिखर मै भी जाती हूँ ,
नारी हूँ ..... आग हूँ ....पानी हूँ....
शक्ति हूँ ...मर्यादा हूँ .....धरा हूँ ...अवनी ...भू ....हूँ ...सबसे जुड़ी मै ............!!!

Thursday, June 27, 2013

मजनू दीवाना..

कल रात अलगनी पर लटकते चाँद को ,
गिरने से बचा लिया उसने ,
हौले से उठा हाथों मे ,
उछाल दिया आसमां मे,
चाँद बन गया आशिक उसका ,
उसकी याद मे घटने लगा ,
पर जब देखी छाप उसकी ,
जिस्म पर अपने इठला के ,
बढ़ने लगा ...... 
कहते है तब से ,
याद मे उसकी घटता औ बढ़ता है ,मजनू दीवाना..

Monday, June 10, 2013

उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़.

शीशे के किरचों पे चलती जिंदगी ,
बूंद - बूंद - तरसाती ये जिंदगी ,
कोरों से निकल ढुलकती जिंदगी ,
छोटी तो कभी सदियों सी जिंदगी ,
नाचती - नचाती देवदासी सी जिंदगी ,
न तेरी न मेरी बाजारू हुई ये जिंदगी ,
हल्का - गहरा खुमार है जिंदगी ,
तेरा नशा है मुझे जिंदगी ,
उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़..... !!!!!

Monday, June 3, 2013

यह नीली - हरी नस

यह नीली - हरी नस , 
उभर आयी ---- सर्पीली नागिन सी - 
उकेरी उन लम्हों की बिखती दास्तां ,
अपनी यादों की स्याही से ... 
यादों का क्या है,
बिन सोचे - समझे यूं ही रिस आती है ,
न देखे वक्त न औकात ,
मनमानी करती हठीले बालक -सी ,
धक्कम - धक्का , देखो कहीं कोई रह न जाए पीछे ,
हर पल तेरे साथ का सिमरन ,
ख्द्बदता रहता है दिल के कड़ाहे मे ,
अनवरत - निरंतर - लगातार -
क्रियाशील -ज्वलंत ज्वालामुखी सा ...

Friday, May 31, 2013

वे

वे 
कुछ दिनों के लिए वे खोह मे छिप जाती ,
जिस कारण चलाती थी वंश ,
उसी की वजह से अछूत बन जाती ..... 
कस - कस कर बांधी जाती थी छतियाँ ,
जिन से पालती थी कद्दावर नस्ल ,
वही बेवजह बेशर्मी बन जाती .... 
काट - छाँट कर सील दिये जाते अंग ,
उनसे ही करती पैदा अगली पीढ़ी ,
कहीं छूते ही नापाक न हो जाए ..... 
गर्दनों मे फंसाए जाते अनगिनत छल्ले ,
जो हमेशा झुकती ही रही .....
आँखों की लिपाई - पुताई काजल से ,
जिन्हे उठाने पर सज़ा ही मिली ...
होठों पे मली गई फूलों की लाली ,
पर खोलते ही जिनके फटकार ही पड़ी ............
वे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..

Monday, May 20, 2013

माँ का नाम

दरवाजे पर खट- खट ,
मुन्नू बोला कौन ?
श्रीमती लीलावती है क्या ?
जी नहीं ...... यहाँ नही कोई इस नाम से ... 
जिला बुलंदशहर , बाबूलाल की बेटी ?
नही ,कहा न यहाँ कोई नहीं ....
अच्छा - अच्छा .... सिर खुजाता अजनबी बुदबुदाया .... 
पता तो यही बताया था .... 
मुन्नू भी सोचे हाँ कुछ सुना - सुना -सा , 
तभी पीछे से माँ की आवाज़ ,
जी हाँ ! है । मेरा ही नाम है यह ।
आप कौन ?
माँ , अजनबी से कर रही बातें ,
मुन्नू मूर्खों सा सोच रहा ,
पर माँ तो माँ होती है ,
क्या उसका भी होता है कोई नाम ?
अगर है तो ...सुना क्यों नही आज तक ?
जिज्जी, बहू , ताई, चाची , बुआ ,मौसी या मामी...
कभी न सोचा माँ का नाम ,
माँ का पकड़ पल्लू ... खींच बोला......
माँ तुमने कभी क्यों नहीं बताया ?
गहरी श्वास , हल्की सी चपत ,
हमका भो कौन याद रही .....चल छोड़ अब पल्लू ...
बहुत काम रही ....
मुन्नू खड़ा अवाक......
अब से रखूँगा याद , औरों को भी कराऊँगा याद बार बार .............