Monday, June 3, 2013

यह नीली - हरी नस

यह नीली - हरी नस , 
उभर आयी ---- सर्पीली नागिन सी - 
उकेरी उन लम्हों की बिखती दास्तां ,
अपनी यादों की स्याही से ... 
यादों का क्या है,
बिन सोचे - समझे यूं ही रिस आती है ,
न देखे वक्त न औकात ,
मनमानी करती हठीले बालक -सी ,
धक्कम - धक्का , देखो कहीं कोई रह न जाए पीछे ,
हर पल तेरे साथ का सिमरन ,
ख्द्बदता रहता है दिल के कड़ाहे मे ,
अनवरत - निरंतर - लगातार -
क्रियाशील -ज्वलंत ज्वालामुखी सा ...

Friday, May 31, 2013

वे

वे 
कुछ दिनों के लिए वे खोह मे छिप जाती ,
जिस कारण चलाती थी वंश ,
उसी की वजह से अछूत बन जाती ..... 
कस - कस कर बांधी जाती थी छतियाँ ,
जिन से पालती थी कद्दावर नस्ल ,
वही बेवजह बेशर्मी बन जाती .... 
काट - छाँट कर सील दिये जाते अंग ,
उनसे ही करती पैदा अगली पीढ़ी ,
कहीं छूते ही नापाक न हो जाए ..... 
गर्दनों मे फंसाए जाते अनगिनत छल्ले ,
जो हमेशा झुकती ही रही .....
आँखों की लिपाई - पुताई काजल से ,
जिन्हे उठाने पर सज़ा ही मिली ...
होठों पे मली गई फूलों की लाली ,
पर खोलते ही जिनके फटकार ही पड़ी ............
वे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..

Monday, May 20, 2013

माँ का नाम

दरवाजे पर खट- खट ,
मुन्नू बोला कौन ?
श्रीमती लीलावती है क्या ?
जी नहीं ...... यहाँ नही कोई इस नाम से ... 
जिला बुलंदशहर , बाबूलाल की बेटी ?
नही ,कहा न यहाँ कोई नहीं ....
अच्छा - अच्छा .... सिर खुजाता अजनबी बुदबुदाया .... 
पता तो यही बताया था .... 
मुन्नू भी सोचे हाँ कुछ सुना - सुना -सा , 
तभी पीछे से माँ की आवाज़ ,
जी हाँ ! है । मेरा ही नाम है यह ।
आप कौन ?
माँ , अजनबी से कर रही बातें ,
मुन्नू मूर्खों सा सोच रहा ,
पर माँ तो माँ होती है ,
क्या उसका भी होता है कोई नाम ?
अगर है तो ...सुना क्यों नही आज तक ?
जिज्जी, बहू , ताई, चाची , बुआ ,मौसी या मामी...
कभी न सोचा माँ का नाम ,
माँ का पकड़ पल्लू ... खींच बोला......
माँ तुमने कभी क्यों नहीं बताया ?
गहरी श्वास , हल्की सी चपत ,
हमका भो कौन याद रही .....चल छोड़ अब पल्लू ...
बहुत काम रही ....
मुन्नू खड़ा अवाक......
अब से रखूँगा याद , औरों को भी कराऊँगा याद बार बार .............

Thursday, May 16, 2013

रोज़ सुबह यही होता है,


रोज़ सुबह यही होता है,
उठाने जाती हूँ उसे और ,
वह उनिदी पलकों से फुसफुसा ,
चादर उठा कहता है बस पाँच मिनिट ,
मै भी इंकार नहीं कर पाती,
बजते कुकर की सीटी को भूल ,
हौले से सरक जाती हूँ उसकी चादर मे ,
हल्का सा चुंबन उसके माथे पे ,
मीठी सी डांट , देर हो रही है ,
कस कर लपेट लेता है वह ....
डाल अपनी टांगे मेरे ऊपर ,
हम्महम्म प्लीज़ .....माँ .... थोड़ी देर और ....
क्या करूँ माँ हूँ न ... पिघल जाती हूँ....
उसकी बाहों मे सिर रख बच्ची सी बन जाती हूँ .....
रोज़ सुबह यही होता है .....   

Monday, May 6, 2013

न स्त्री न ही पुरुष

छक्का ...
हिजड़ा ....
हा हा ...ही..... ही .... 
नहीं कोई पहचान ,
न ही कोई मान ,
बस हंसने - हँसाने का सामान॥ 
न स्त्री न ही पुरुष ,
दोनों का ही समावेश ,
इसलिए हँसी का पात्र॥ 
गाना - बजाना - नाचना ,
अपना दर्द छिपा --- हाय - हाय कहना ,
काम नहीं मजबूरी है मेरी ,
अब तुम्हें भी यही सुनने की आदत जो है मेरी ॥

Saturday, May 4, 2013

चाँद के कटोरे से

चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर,
ओक- ओक पी, जिये रात भर ,
भीगी हसरत ,खिले ख्वाब रात भर ,
उनिदी आँख , बहके अरमान रात भर ,
चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर ... 

अस्फुट स्वर , मदमाते नयन रात भर ,
घुलती रही चाँदनी आँगन रात भर ,
मखमली बोसे बरसते रहे रात भर ,
पीते रहे हम तुम ,जीते रहे रात भर , 
चाँद के कटोरे से झरी शबनम रात भर ॥

Sunday, April 28, 2013

ऐ लड़की तू करती ????

ऐ लड़की .... तू क्या करती ?
फर्श पौंछती...माँजती बर्तन ,
कपड़े धोती ... खाती जूठन |

ऐ लड़की ... तू क्या करती ?
खुरदरी जमीं पे लेटी, गाली सुनती ,
खाती लातें औ सपने बुनती |

ऐ लड़की..... तू क्या करती ?
गाँव से बाहर , इत्ती दूर ,
भय्या का बस्ता ,बाबा की दारू ,
अम्मा की दवाई , घर का खर्चा ।

ऐ लड़की .... तू क्या करती ?
गला हड्डियाँ ,जमाती घर की नींव ,
मूक निगाह, सुनी जुबां,
ऐ लड़की तू करती ????