Wednesday, January 19, 2011

अनजाना पर अपना देश

अनजाना पर अपना देश
इस अनजान देश ,
नगर , गली  में महफूज़ हूँ मैं |
इन अजनबी , अनदेखे ,
चेहेरो   के बीच सुरक्षित हूँ मैं |
ये सपाट - निस्तेज चेहेरे,
प्रशन नहीं पूछते ,
फिकरे नहीं कसते ,
स्वीकारते हैं मुझे ,
मेरे ही रूप में |
अपनों के बीच ,
तालमेल का झमेला है ,
रिश्तों की भीड़ ,
फिर भी मन अकेला है |
समझोते की दुनिया ,
हर वक़्त की खींचतानी,
देती है बस परेशानी |
इसलिए मैं
इस अनजान देश ,
नगर , गली  में खुश हूँ..........

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