ऐसा क्यों होता है ,
जिन्दगी गुज़र जाती है पर मन का मीत मिलता नहीं
मौसम बदल जाता है पर मन का फूल खिलता नहीं
इस गांठ को सुलझाते यह छोर और फंसता जाता है
ऊपर से हँसता दिल भीतर ही भीतर रोता जाता है
छोटा सा सपना कही आँखों में ही अटका रह जता है
साथ की चाह में सूनापन अधिक बढता ही जाता है
पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है
ऐसा क्यों होता है ...ऐसा क्यों होता है ....ऐसा क्यों होता है ???
जिन्दगी गुज़र जाती है पर मन का मीत मिलता नहीं
मौसम बदल जाता है पर मन का फूल खिलता नहीं
इस गांठ को सुलझाते यह छोर और फंसता जाता है
ऊपर से हँसता दिल भीतर ही भीतर रोता जाता है
छोटा सा सपना कही आँखों में ही अटका रह जता है
साथ की चाह में सूनापन अधिक बढता ही जाता है
पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है
ऐसा क्यों होता है ...ऐसा क्यों होता है ....ऐसा क्यों होता है ???
पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है
ReplyDeleteबेहतरीन ।
kyonki mann ka meet birla hi hota hai
ReplyDeleteप्रशंसनीय प्रशंसनीय
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