Sunday, March 13, 2011

अम्मा की जिद्द

माँ की अब यही रहती है वही पुरानी जिद्द ,
बिटिया तुम तो बस लिखा करो चिठ्ठी |
हँस कर कहा, "हम रोज़ ही तो बतियाते हैं ,
फिर काहे को लिखे हम  वही  जो कह -सुन जाते हैं |
पता तो है हमको सबका सबकुछ रोज़ का हिसाब किताब ,
हाथरस वाले मामा की छुट्टन का ब्याह तय हो गया ,
बिना दहेज़ के बहुत ही बढ़िया विदेसी वर मिल गया |
एटा वाले चच्चा  का मंझला बेटा अभी भी है बेकार ,
और उनका बड़का , शादी होते ही घर से निकल गया |
बहुत दिनों से बीमार दाउदपुर वाले काका गुज़र गए ,
अच्छा ही है सोने की सीढ़ी चढ़ सुवर्ग सिधार  गए |
आंगन मे लगे अमरुद के फल,  सुनहरे हो पक गए ,
गाँव के बेकार पड़े खेत, भी कब के बिक गए |
गली के नुक्कड़ की हलवाई की दुकान खूब चलती है ,
जलेबी और समोसे  नहीं अब वहाँ   चाउमीन बिकती है |
परसाल जो भेजी थी, किसी के हाथ  कान की मशीन ,
अब शायद तुम्हें,  सुनने में  कुछ तकलीफ दे रही है |
सारी बातें तो हो जाती हैं लगभग हर रोज़ ,
फिर भी तुम्हरी काहे वही पुरानी जिद्द |
अरी बिटिया ! पत्री  हम बार - बार पढ़ते हैं,
कभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते  हैं |
उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
सिरहाने के निचे  रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा  ही अपने पास पाते हैं............!!!





4 comments:

  1. अरी बिटिया ! पत्री हम बार - बार पढ़ते हैं,
    कभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते हैं |
    उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
    सिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
    तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं............!!!
    mann ka kona kona bheeg gaya

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  2. पूनम जी,

    बहुत मार्मिक.....भावनाओं में डूबी ये चिट्ठी बहुत भाई....प्रशंसनीय|

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  3. उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
    सिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
    तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं.......

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।।

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