Wednesday, March 16, 2011

naari

कभी तुझे बैठे नहीं देखा ,
कभी तुझे लेटे नहीं देखा ,
भागती - दौड़ती फिरकनी - सी ,
सबकी चिंता , सबकी फ़िक्र |
दो घड़ी तू बैठ क्यों नहीं जाती ,
अपने साथ वक़्त क्यों नहीं बिताती ,
कंपकंपाते हाथ , लड़खडाते पांवों को ,
अब तो करने दे कुछ आराम |
पर हर बार तू हँस देती है ,
अरे ! बैठ गयी तो बैठी रह जाउँगी,
इस जन्म में तो नहीं पर शायद ,
परलोक जा कर ही आराम पाऊँगी ,
चलने दो जब तक चलता यह तन ,
अपना नहीं , तुम सब में है मेरा मन ............!!!

8 comments:

  1. Thanks for your visit to iyatta. Nice of expression of nice feelings in simple words. In fact , I liked your previous post' Amma ki zid'very much.

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  2. din bhar firkani si bhaagti maa ... aise hi sukun pati hai

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  3. Sahi kaha apne rashmi ji , Maa akhir aisi hi hoti hae...

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  4. पूनम जी,

    बहुत ही सुन्दर लगी ये पोस्ट सच कहा है आपने उन तमाम नारियों को मेरा सलाम .....रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|

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  5. सुन्दर कविता
    हर नारी की यही कहानी है
    शुभकामनाये

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  6. AAp sab ko bhi Holi ki mubarkbaad...

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  7. आदरणीया पूनम जी
    सस्नेह अभिवादन !

    नारी की वास्तविक कहानी है इस कविता में-
    चलने दो जब तक चलता यह तन ,
    अपना नहीं , तुम सब में है मेरा मन ………!!!

    सच, श्रीमतीजी में आपकी रचना वाली नारी को देखता रहता हूं … :) इसी लिए तो नारी शक्ति को नमन करते हुए लिखता रहता हूं … नीचे दिए गए लिंक द्वारा आ'कर देखें

    विलंब से ही सही …

    विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
    शुभकामनाएं !!
    मंगलकामनाएं !!!

    ♥ मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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