Monday, June 6, 2011

bachpan

मेरे भीतर का बचपन,
अब भी मन मे पलता है |
बारिश की बूंदों को देख,
कागज़ की कश्ती सा डोलता है|
बादल की गर्जन पर ,
बिजली सा चमकता है |
लू के गर्म थपेड़ों में ,
बर्फ के गोले सा पिघलता है |
पूस की ठंडी रातों में ,
अँगीठी की आंच सा तपता है |
बसंत की मीठी बयार में ,
कोयल सा कूकता है |
मेरे भीतर का बचपन ,
अब भी मन में पलता है |...

2 comments:

  1. दिल तो बच्चा है जी.....और अगर बच्चा ही रहे तो क्या बात है |

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  2. बचपन के दिन भी क्या दिन थे...!

    उड़ते फिरते तितली बन के...!!

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