Sunday, July 31, 2011

अबकी तीज

पिछली बार की तरह इस बार भी नहीं आ पाऊँगी ,
अम्मा कह देना ......
झूले की पेंग से , महावर की चमक  से ,
ढोलक की थाप से ,सावन के गीत से ,
तुलसी के चौरे  से ,आम की बौर से ,
मेहँदी की महक से , चूड़ी की खनक से ,
मेघ से - मल्हार से , गुड्डे और गुडिया से ,
पड़ोस की रधिया ताई से  , रामदीन हलवाई से ,
बचपन की सखी - सहेलियों से , भाभी -बहना से ,
हर दीवार-  कोने से , मोहल्ले के हर दरवाज़े से ,
बिट्टो तुम्हारी बहुत दूर है ,
जिम्मेवारी से भरपूर है ,
आसान  नहीं इत्ती दूर का आना ,
बच्चों की पढाई , घर की रसोई ,
रोज़ के काम , मेहमानों का आना - जाना ,
अगली बार शायद .......... आ जाये ....
अम्मा ज़रूर कह देना .............













4 comments:

  1. सच है इंसान अपनों से कितना दूर हो जाता है रोज़मर्रा की जिंदगी में.......सुन्दर पोस्ट|

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  2. पड़ोस की रधिया ताई से , रामदीन हलवाई से ,
    बचपन की सखी - सहेलियों से , भाभी -बहना से ,
    हर दीवार- कोने से , मोहल्ले के हर दरवाज़े से ,
    बिट्टो तुम्हारी बहुत दूर है

    अपनों से दूर होने का दर्द और विशेष अवसर पर भी उन तक न पहुँच पाने का दर्द स्पष्ट झलकता है रचना में.

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  3. apke blog per pehli bar aye hai apke blog ki background aur hamari eksi hai laga yeh to hamne nahi likha tha kya khul gaya ..........
    aapki sabhi rachnayen padi sunder hai sab

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  4. aap sabhi ko bahut bahut dhnyawad...

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