Sunday, August 7, 2011

तुम्हारी बड़ी

प्रिय भैय्या ,
राखी - टीका जो भिजवाया था ,
वह अब तक मिल गया होगा |
उसके साथ रखा कार्ड ,
मैने खुद बनाया है ,
अपने हाथों से सजाया है ,
जैसे बरसों पहले ,
तुम्हारे माथे पर ,
रोली - चावल का तिलक सजाती थी |
अब, छोटी से बँधवा लेना ,
और मेरा शगुन भी उसे ही दे देना |
बचपन में ग्यारह रूपए से लेकर ,
कॉलेज में पाँच सौ रूपए मिलने तक |
याद है मैं कितना लड़ जाया करती थी ,
बड़ी होने की धौंस दिखा कर ,
सदा  ज्यादा  ही वसूल कर पाती थी |
पापा भी हमेशा हँस कर कहते ,
अरे मुँह न फुला ,तेरा हक़ है ,ले -ले |
माँ पर आँख दिखा समझाती थी ,
जो मिले , उसमें खुश रहना सीख |
पापा का बटुआ ले माँ को चिढ़ाती,
कमरे से हवा हो जाती थी |
तब नहीं नहीं समझी थी ,
अब समझ गयी हूँ |
नहीं  कुछ नहीं चाहिए ,
बस तुम्हारी कलाई का स्पर्श ,
माथे की छुअन .
और ...
मेरे गाल पर हलकी सी चपत |
हर बार की तरह , इस बार भी ,
वह भी छोटी को दे देना |
तुम्हारी बड़ी .........!!

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर राखी के पर्व पर सुन्दर उपहार है ये पोस्ट|

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  2. बहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है पोस्ट......मित्रता दिवस की शुभकामनायें।

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