Sunday, April 22, 2012

क्या हूँ मैं ,

क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए .....
सुनू बस तुम्हारी ही व्यथा ,
तुम्हारा ही दुःख....
साथ दूँ सिर्फ ,
तुम्हारा ही त्यौहार ,
तुम्हारी ही ख़ुशी  ..... 
जब चाहो ,
आंधी की तरह ,
रौंदते - झकझोरते ,
करते अपनी मनमानी ,
मुझे छोड़ रीता ,
चल दिए ..........
क्या हूँ मैं ,
तुम्हारे लिए .....
मन ...
या 
तन ????

6 comments:

  1. मुझे छोड़ रीता ,
    चल दिए
    क्या हूँ मैं मन
    या तन तुम्हारे लिए ?

    वाह!!!!!!बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,....poonm jee

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...

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  2. सुंदर रचना , सुंदर प्रस्तुति

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  3. bahut satik abhivyakti sarthak prashn chhodti.

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  4. हम सिर्फ तन हैं ...........मन किसी को समझ नहीं आता हैं

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  5. जीवन की वास्तविकता को बखूबी अभिवुयक्त किया है आपने इन शब्दों में .....जिन्दगी का फलसफा किसे समझ आया है आज तक .....फिर भी अनवरत समझने की कोशिश में है जिन्दगी ..!

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  6. कोशिश तो बहुत की पर ,
    एक हाथ से तली बजती ही नहीं हे ...
    सोचता हूँ एक बार सूखे कुए ,
    में छलांग मारके देखता हूँ .....
    अगर कुछ तजुर्बा हाशिल हुआ तो जरूर बताऊंगा
    बरना हमें तो सिर्फ ताने ही मिला करते हे ...??????

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