Wednesday, September 26, 2012

तुम्हारी याद

जब भी सोचती हूँ तुम्हें ,
उभर आता है नीला आकाश ,
ऊँची - ऊँची चोटियाँ,
कल - कल बहती नदी ,
लम्बे - घने पेड़ ,
काली- स्यहा चट्टानें ,
और 
एक पुराना मंदिर |
जहाँ बरसों से ,
कोई दिया न जला ,
परिंदा न गया ,
न घंटी, न धूप |
आओ हम - तुम मिल कर ,
धर दे देहरी पर ,
दीपक एक जलता हुआ ,
प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |

5 comments:

  1. वाह ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं

    एक पुराना मंदिर |
    जहाँ बरसों से ,
    कोई दिया न जला ,
    परिंदा न गया ,
    न घंटी, न धूप |
    आओ हम - तुम मिल कर ,
    धर दे देहरी पर ,
    दीपक एक जलता हुआ ,
    प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,,शानदार रचना,,,

    आओ हम - तुम मिल कर ,
    धर दे देहरी पर ,
    दीपक एक जलता हुआ ,
    प्रतीक तेरे - मेरे एक होने का |

    RECENT POST : गीत,

    ReplyDelete
  3. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  4. दिया प्रतीक हो गया प्रेम का जो राह रोशन बनाएगा !
    सुन्दर !

    ReplyDelete
  5. वाह वाह बहुत ही सुन्दर।

    ReplyDelete