Thursday, November 22, 2012

मै ही तो हूँ


चूल्हे मे लकड़ी सी जलती ,
पतीली मे दाल सी गलती,
चक्की मे दानो सी पिसती ,
टाइप रायटर मे रिबन सी घिसती ,

मै ही तो हूँ . सब और , हर तरफ .

सड़क पर पत्थर सी कुटती,
घर पर फर्नीचर सी सजती ,
कुएं पर काई सी जमती .


मै ही तो हूँ , सब और , हर तरफ .

खुद की तालाश मे , खुद को खोजती ,
ख़ामोशी मे शब्दों को तलाशती ,
भीड़ मे अकेलेपन को  निहारती ,
अजनबी में किसीको सहराती .

मै ही तो हूँ , सब और , हर तरफ .
  इति

15 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना पूनम जी,
    अरुन शर्मा - www.arunsblog.in

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  2. बहुत ही सुन्दर.....

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  3. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (24-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

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  5. नारी मन की त्रासदी ... सुंदर प्रस्तुति

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  6. हर तरफ मैं ..फिर भी खुद की तलाश में!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. खुद की तालाश मे , खुद को खोजती ,
    ख़ामोशी मे शब्दों को तलाशती ,
    भीड़ मे अकेलेपन को निहारती ,
    अजनबी में किसीको सहराती .

    मै ही तो हूँ , सब और , हर तरफ .
    इति

    यही तो इसका उत्तर भी है . यत्र , तत्र , सर्वत्र

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  8. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी सी पोस्ट

    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html

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  9. मैं से मैं की मुलाकात बेहद सार्थक ...बहुत खूब

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  10. स्वयं की तलाश ...
    सुंदर प्रस्तुति ...

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  11. खुद की तालाश मे , खुद को खोजती ,
    ख़ामोशी मे शब्दों को तलाशती ,
    भीड़ मे अकेलेपन को निहारती ,
    अजनबी में किसीको सहराती .

    बहुत अच्छा लगा। स्वयं को खोजना भी आनंददायक होता है। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  12. सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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