तुम्हें पता है न कि,
हूँ, मैं पारदर्शी तुम्हारे लिए ,मुझे भी है पता ...............क्यूँ घुल जाती हूँ ,तुम्हारे सामने और,सोख लेते हो तुम ,मेरी जलन , परेशानी , पीड़ा ,अपने नर्म होठो के,सुरभित स्पर्श से ..............................बुहार देते हो ,मिथ्याबोध , भ्रम , नुक्स ,अपनी झिलमिलाती पालको की हल्की सी सरसराहट से ..............मुझे है पता कि,मैं हूँ पारदर्शी तुम्हारे लिए.......मुझे है पता .....सिर्फ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ..................
बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।
ReplyDeletebahut bahut abahar
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
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