Monday, February 28, 2011

मेरी कविता है उदास

जैसे ही लिखने को उठाई कलम ,

कविता ने लगाई जोर से फटकार
इतना मच रहा है यहाँ हाहाकार ,
तू बस डूबी है सपने और प्यार
मासूमों पर हो रहा लगातार वार,
गोली - बारूद की गूंजती टंकार
एक देश की आग , अन्यों मे फैली जाती है ,
अमन - चैन की धज्जियाँ उडती जाती हैं
ऐसे में तू कैसे गीत गा सकती है ,
इश्क -मोहब्बत को कैसे सजा सकती है
मिस्र मे फैली आग , पूरी खाड़ी को जलती है ,
दंगे - चीख - चिल्लाहट से दुनिया दहल जाती है
ऐसे में कैसे करे कोई मिलने - मिलाने की बात ,
चाँद - चांदनी और चमकीली - मदहोश रात
इसलिए आज मेरी कलम है दूर ,
और मेरी कविता है उदास .....!!!



Friday, February 25, 2011

ऐसा क्यों होता है ,

ऐसा क्यों होता है ,


जिन्दगी गुज़र जाती है पर मन का मीत मिलता नहीं


मौसम बदल जाता है पर मन का फूल खिलता नहीं


इस गांठ को सुलझाते यह छोर और फंसता जाता है


ऊपर से हँसता दिल भीतर ही भीतर रोता जाता है


छोटा सा सपना कही आँखों में ही अटका रह जता है


साथ की चाह में सूनापन अधिक बढता ही जाता है


पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है


ऐसा क्यों होता है ...ऐसा क्यों होता है ....ऐसा क्यों होता है ???



Tuesday, February 22, 2011

मुट्ठी में बंधा वक़्त

कितना कसके बंधा था मुट्ठी में ,
फिर भी चुपके से निकल गया |
तेरे - मेरे बीच ठहरा वह वक़्त ,
हाथों से रेत सा फिसल गया |
अब भीतर धंस गया है वह पल ,
गहरे मन के किसी कोने में |
मेरे अंदर हम  दोनों  साथ चलते हैं ,
किस्से - कहकहे हवा में तिरते हैं |
पेड़ों से घिरी राह ख़त्म नहीं होती ,
नज़रों से मिली नज़र नहीं थकती |
तेरा अचानक ठिठक कर वह चूमना  ,
मेरा वह हलके से रुक कर सिहरना |
वक़्त जो बिताया था तेरे साथ कभी ,
ठहर गया है कहीं  जो बहता ही नहीं |

Monday, February 21, 2011

ख्वाब

पलकों के भीतर ख्वाबों को पलने दे ,


नशवर ही सही उसे कुछ पल जीने दे


झूठा ही सही, पर ख्वाब तो है - तेरा ,

मन में एक इन्द्रधनुष -सा खिलने दे ,

शीशे सा टूट जाता है ,बड़ा नाजुक है ,

...जब तक रहे , वहाँ इसे चमकने दे


जिन्दगी वैसे ही बेज़ार रुलाती है ,

उन हसीं  लम्हों को याद कर हँसने दे

Friday, February 18, 2011

कपास की तरह

कपास की तरह
कपास की तरह ,
बोया..
उगाया...
सहेजा ...
संवारा ...
चुना....
काता....
बुना.....
सिया....
पहना....
धोया....
कूटा......
निचोड़ा....
झिंझोड़ा ...
फटकार .....
उतारा....
बदला....
गया  हमें ................

Monday, February 14, 2011

जिंदगी का कैनवस

जिंदगी का कैनवस
अपनी जिन्दगी का कैनवस ,
खुद रंगा है |
एक - एक रंग बड़ी हिफाज़त ,
से चुना है |
कई रंग आपस में अच्छी तरह ,
घुलमिल जाते हैं |
कुछ रंग एकाकार हो कर ,
नया रंग दे जाते हैं |
कई रंग लगते ही आपस में ,
जँच नहीं पाते हैं |
कुछ रंगों की कमी अक्सर ,
खल जाती है |
कुछ रंग अन्य सभी रंगों पर ,
हावी हो जाते हैं |
कुछ रंग कितनी ब़ार भी लगाओ ,
खिल नहीं पाते हैं |
कुछ रंग उधार लेकर भी मैनें ,
कभी - कभी  लगाये हैं |
कुछ रंग प्यार से लगाकर ,
फिर मिटाए हैं |
कुछ रंग कितना भी चाह कर ,
भी नहीं लगाये हैं |
कुछ रंग गलती से अनजाने में ,
 जल्दी   में  सजाए हैं |
कई ब़ार तो कैनवस मैंने ,
अधुरा भी छोड़ा है |
कई ब़ार रातों को उठ - उठ कर ,
रंगों को बिखेरा है |
अपनी जिंदगी का कैनवस मैनें खुद रंगा है ..........|


Sunday, February 13, 2011

आज

आज ,


हथेली पर चमकता चाँद ,

पलकों पर हसीन ख्वाब ,

ले चली , तेरी ओर मैं ......

आज ,

नज़रों में तपती रात ,

बाँहों में शीतल चांदनी ,

ले चली , तेरी ओर मैं.....

आज .

होठों पर शोख बिजलियाँ ,

मन में सतरंगी इन्द्रधनुष,

ले चली , तेरी ओर मैं....

आज , आज , आज , आज .....