काफी अरसे के बाद बंद खिड़की खुली ,
तन मन को हर्षित कर गयी .
यादो की पिटारी जो कब से सहेज रखी थी ,
परत दर परत खुल गयी .
घास ,फूल , धूप की महक ,
हर कोने को छू गयी ,
खिलखिलाना ,मनाना, रूठ जाना ,
सब यादे तरोताजा हो गयी .
बड़ा लम्बा सफ़र है यह ,
मुड़ कर देखा तो पाया .
एक उम्र पीछे छोड़ आये है हम .
इति
Friday, May 14, 2010
Sunday, May 9, 2010
dayra
कितने दायरे में बंधे है हम |
दायरे , जो खींचे है स्वय हमने,
अपने चारो ओर |
दायरा , टूटते ही ,
मच गया शोर ,
चारो ओर |
उठने लगी निगाहे ,
तीखी , बेधती सी |
ये उठती निगाहे ,
धकेल देती है ,
वापिस अपने दायरे की ओर |
दायरे, जो बनते जा रहे है ,
दलदल |
ओर हम धंसते जा रहे है ,
गहरे ,
छटपटआते ,
अवश |
..........................
दायरे , जो खींचे है स्वय हमने,
अपने चारो ओर |
दायरा , टूटते ही ,
मच गया शोर ,
चारो ओर |
उठने लगी निगाहे ,
तीखी , बेधती सी |
ये उठती निगाहे ,
धकेल देती है ,
वापिस अपने दायरे की ओर |
दायरे, जो बनते जा रहे है ,
दलदल |
ओर हम धंसते जा रहे है ,
गहरे ,
छटपटआते ,
अवश |
..........................
Friday, May 7, 2010
audhre sapne
एक टुकड़ा धूप,
थोड़ी सी छाँव.
ज्यादा तो नहीं चाहा,
पर पूरी न हुई .
जिन्दगी इसी का नाम है .
अधूरे ही सही कुछ सपने ,
पूरे तो हुए .
थोड़ी सी छाँव.
ज्यादा तो नहीं चाहा,
पर पूरी न हुई .
जिन्दगी इसी का नाम है .
अधूरे ही सही कुछ सपने ,
पूरे तो हुए .
Thursday, May 6, 2010
Sunday, March 7, 2010
slib
सलीब
हम सब टंगे है अपनी - अपनी सलीब पर
ईसा को तो , ठोका था औरो ने ,
हम मजबूर स्वयं को ठोकते है |
औरो ने ठोका तो आप महान ,
और हम खुद ही टंगे , तो मात्र मानव?
.......................
हम सब टंगे है अपनी - अपनी सलीब पर
ईसा को तो , ठोका था औरो ने ,
हम मजबूर स्वयं को ठोकते है |
औरो ने ठोका तो आप महान ,
और हम खुद ही टंगे , तो मात्र मानव?
.......................
Friday, February 19, 2010
kahi - ankahi
कही - अनकही
दूर ,फिर भी अन्तस्थ .
गहन , फिर सूक्ष्म .
संचित , फिर भी हीन.
अमूल्य , फिर भी नगण्य .
भरपूर फिर भी रिक्त .
Wednesday, February 3, 2010
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