Saturday, January 29, 2011

माँ तेरी जैसी

माँ तेरी जैसी
सब कहते हैं मैं तेरी तरह दिखती हूँ ,
तेरी तरह हँसती और रोती हूँ |
सुन कर गौरवान्वित हो जाती हूँ ,
पर माँ मेरी रोटी, तेरी तरह नहीं बनती ,
जैसी बनाती है तू ,नर्म - नर्म - गोल ,
पतली - करारी और ढेर सारा घी ,
मेरी रोटी वैसी क्यों नहीं बनती ......|
उबली दाल में वह हींग- जीरे का छौंक,
उसकी महक से ही भूख जाये लहक ,
माँ मेरी दाल से वह महक क्यों नहीं आती ...|
बासी रोटी की चूरी और खूब  सारी शक्कर ,
छाछ भरे ग्लास में तैरता ढेला भर मक्खन ,
माँ मेरी चूरी में शक्कर ठीक से क्यों  नहीं पड़ती ..|
टिफिन में परांठा और आम के आचार की फांक ,
जीभ को तुर्श कर जाये वह मीठी सी - खटास ,
माँ मेरी आचार की फांक में वह खटास क्यों नहीं आती ..|
स्टील के बड़े ग्लास में गर्म - गर्म  दूध की भाप ,
उस पर तैरती मोटी - गाढ़ी मलाई की परत ,
माँ मेरे दूध में वैसी  परत क्यों नहीं पड़ती ...|
जब मैं हूँ तेरी जैसी माँ......!
 तो मेरी रोटी तेरी जैसी क्यों नहीं बनती ...???

2 comments:

  1. Lajavaab!!!!Itni meethas hai tumari kavithaon mein ki anayas hi man aur maangne lagta hai...bachpan ke inhi meethe lamho ke sahare tho hum aaj bhi jeeye ja rahe hain!!!!!

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  2. shukriya ....bacpan ke din bhi kya din they...

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