Sunday, May 1, 2011

adat

गाल पर हाथ रख ,मुस्कुराते हुए ,

उसने कहा.......
अब तुम्हारी आदत सी हो गयी है
तो हमने भी मुस्कुरा कर यही कहा ...
न हूँ मैं सुबह की भाप उड़ाती एक प्याला चाय ,
न रबरबैंड में लिपटा बरामदे में फेंका अखबार ,
ऐसा भी तो कह सकते थे ....
अब तुम्हारा साथ अच्छा लगता है ,
बिन बात यूँ ही खिलखिलाना ,
कुछ कहते - कहते रुक जाना ,
एक साथ बोलना या ,
अचानक चुप हो जाना ,
बस एकटक देखना
क्या है जो यकायक ,
रोक देता है...
क्यों नहीं कह पाते,
मन की परतों मे है जो दबा ,
कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
या फिर अगली मुलाकात की ,
पृष्ठभूमि बन जाता है .....!!!!!!

9 comments:

  1. bahut khoob

    prem me aisa hi hota hai

    sundar abhivaykti

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  2. आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
    मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

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  3. कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
    जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
    या फिर अगली मुलाकात की ,
    पृष्ठभूमि बन जाता है ....

    बहुत खूबसूरत अहसास.
    आपकी कलम को सलाम.

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  4. एक साथ बोलना या ,
    अचानक चुप हो जाना ,
    बस एकटक देखना
    क्या है जो यकायक ,
    रोक देता है...
    क्यों नहीं कह पाते,
    मन की परतों मे है जो दबा ,
    कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
    जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
    या फिर अगली मुलाकात की ,
    पृष्ठभूमि बन जाता है .....!!!!!!

    ईश्वर ये पृष्ठभूमि बनाए रखे सदा..!!

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  5. प्रेम के रस से सराबोर है ये पोस्ट........बहुत सुन्दर |

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  6. behut behut accha likha hai, ek gehera ehesaas behut sunder dhang se pesh kiya hai. itna sunder likhti rahein

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  7. एक सुन्दर रचना.

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