उनका मन बहुत दयालू है ,
प्रतिमाह फटी - पुरानी उतरन ,खिलौने ,
पास की झोपड़ -पट्टी में दे आती हैं |
पहनने वालों का तो पता नहीं ,
वह स्वयं अख़बारों में छप जाती हैं |
उनका मन बहुत उदार है ,
प्रतिवर्ष एक डरा- सहमा बालक ,
गाँव से उधार ले आती हैं ,
बच्चे का तो पता नहीं ,
वह स्वयं तारीफ़ तले दब जाती हैं |
उनका मन बहुत कोमल है ,
हर हफ्ते नारी निकेतन के चक्कर लगाते हैं ,
किसी मासूम कन्या को ,
अपने माली की बीवी बना लाते हैं|
माली का तो पता नहीं ,
वह रोज़ ताज़े गुलदस्ते सजवाते हैं |
इति.....
आइना दिखाती हुई तश्वीर ....
ReplyDeleteparde ke piche ka sach !
ReplyDelete...मन को छूती बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteapne bilkul sateek baat kahi hai ,,,,itne achhe andaz me,,,,wakai lajawab
ReplyDeleteबहुत ही कडवी सच्चाई को बखूबी उकेरा है…………शानदार धारदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........दिखावे पर करारी चोट........बहुत शानदार रही.........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteबेहतरीन ।
ReplyDeleteकल 30/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....
सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteन जाने कितने ऐसे दयालु,उदार और कोमलमना लोग समाज में भरे पड़े हैं.....!
ReplyDeleteएकदम सही और यथार्थ विवरण....
सही शब्दों और भावों के साथ...
आभार !!
aap abhi ka bahut bahut shukriyaa....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर बधाई...
sach ko ujaagar karti rachna...!
ReplyDeletebahut sundar..!
this is the controversy. we all are selfish...
ReplyDeleteare vah...... teekha vyang ....badhai Poonam ji .
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