तब लगती थी हर बात नसीहत
हर टोक पर होती थी झुंझलाहट
तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ......
माँ बन कर जान पाई हूँ तेरी उलझन माँ
वो इम्तिहान के वक़्त वही बैठे रहना
आधी रात को उठ चाय का बनाना ,
सब कुछ दोहरा लिया न की रट लगाना ,
यह सब कितना किलसाता था ,
तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ ..
मेरे इंतज़ार में दरवाजे पर खड़े रहना ,
कहाँ रह गयी थी अब तक कह झिडकना ,
हाथ से बस्ता ले चल खा ले अब कुछ ,
तेरी ही पसंद का बनाया है कह दुलारना ,
अब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,.
तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ.....!!!
अब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,.. hona hi tha
ReplyDeleteतब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ......
ReplyDeleteमाँ बन कर जान पाई हूँ तेरी उलझन माँ
सही कहा आपने एक न एक दिन हम हर वो बात समझ लेते हैं जो कभी हम समझ नहीं पाते हैं।
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कल 28/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeletesamay dohraata hai ...inhin rishton me apne aapko ...sunder rachna ...
ReplyDeleteअब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,.
ReplyDeleteतब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ.....!!!
बहुत बढि़या ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
सुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !!
अब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,.
ReplyDeleteतब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ.....!!!
सुन्दर अभिव्यक्ति ...
बहुत खूबसूरत रचना माँ की हर बात अच्छी होती है दोस्त |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसच है किसी की बात समझनी है तो हमें उसी के जैसा होना पडेगा....
सादर...
तब लगती थी हर बात नसीहत ,
ReplyDeleteहर टोक पर होती थी झुंझलाहट ,
तब नहीं समझी पर , माँ बन कर ही माँ की
भावना समझ में आती है.... !!
माँ के मन की बात माँ बन कर ही समझी जाती है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteभाव पूर्ण रचना ...
ReplyDeleteWhere is my all the comments Poonam Ji?....Please check your spaim comments on comments option on your blog.
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