सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |
अधखुली पलकों में ,
फिर नए सपने पल गए |
मन के आँगन में ,
प्रेम की छाया तले..
आशा के झूले पड़ गए |
सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |
फूला गेंदा , महका चमन |
पाती-पाती , हीरक -माणिक |
महके , मधुर , पीत पराग कण |
सयंम की डोरी तोड़ के ,
ह्रदय हिरन कुलाँचे भर गए |
सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |
हरित -धरती , नील - गगन |
ओस बूंदों से चमचम उपवन |
झरते झरने कल - कल |
रस्मों के बंधन तोड़ कर ,
प्रेमी युगल मिल गए |
सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |
!!!!!बहुत सुंदर बासंती प्रस्तुति ,अच्छी रचना
ReplyDeleteNEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....
shukriya
Deleteबसंती बयार....सुन्दर रचना....सुन्दर तस्वीर |
ReplyDeleteshukriya.
Deleteबहुत बढ़िया वासंती कविता...
ReplyDeleteवाह रे बसंत .....अपनी सखी को बसंत के बारे में बताने का अंदाज निराला है ....!
ReplyDeleteलाजवाब बसंती रचना ... बहुत ही अच्छी ...
ReplyDeleteखिली खिली सी सुवासित रचना...
ReplyDeleteबधाई..
बहुत प्यारी रचना.
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