खींच हथेली मेरी , ऊँगली से अपनी ,
हल्के से लिखा तुमने अपना नाम .
ढांप अपनी दूजी हथेली से उसे ,
बैठी रही इसे मैं अपना मान .
धीरे से खोल उसे देती रही दिलासा ,
हो तुम यहीं-कहीं मेरे आस- पास .
खुली आँखों में सजा बैठी सपना ,
और करने लगी कल्पना से प्यार .
ख्वाब भी था आशिक मनचला,
वक़्त-बेवक्त करने लगा परेशां ,
भींच हथेली गालों पे टीका,
करती रही तुम्हारे होने का इंतजार ....
खुली आँखों में सजा बैठी सपना ,
ReplyDeleteऔर करने लगी कल्पना से प्यार .
ख्वाब भी था आशिक मनचला,
वक़्त-बेवक्त करने लगा परेशां ,
yhai hota hai .......khuli ankhon ke sapne vakai jindagi ko tabah kr dete hain ....rachana behad sundar ....sadar abhar.
वाह!!!!बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
खुद को दिलासा देती अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से लिखा है आपने.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteintzaar bas intzaar
ReplyDeletekabhee khatm nahee hotaa intezaar
nice wordings
ashik manchala khabab:)) bahut khub!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआभार !
खींच हथेली मेरी , ऊँगली से अपनी ,
ReplyDeleteहल्के से लिखा तुमने अपना नाम .
एक अद्भुत भाव उभर आया है इन पंक्तियों में ...!
वाह!!!!!पूनम जी,अद्भुत भाव की बहुत अच्छी प्रस्तुति,... सुंदर रचना
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
Vaah ...khoobsoorat bhav
Deleteवाह...नाज़ुक सी कविता!!
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