Saturday, December 10, 2011

pravah

तुम्हारी पेशानी पर झलकते ,
स्वेद - बिन्दुओ को ,'
आँचल मे सह्जेने को जी चाहता है

जी चहता है ,
स्वेद - बिन्दुओ के हेतु
सिमट आए मेरे आँचल मे ,
तो यह आँचल सार्थक हो

तुम्हारे राज में हमराज बन
खो जाने को जी कहता है

जी कहता है ऐसे ही खो जाने से
महामिलन की अनुभूति ,
प्राप्त हो मुझे भी एक ब़ार

पलको पर घिर आए ,
तुम्हारे इस गीलेपन को
पी जाने को जी कहता है

जी कहता है
और यह प्रयास
बन जाए प्रतीक
हमारे अनंत में खो जाने का

तुम और में का विभाजन
समाप्त कर ,
तुम से मे , में कहलाऊ
जी कहता है
इति.....................

4 comments:

  1. खूबसूरत ख्वाहिशें :)

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  2. वाह उम्दा अनुभूति

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  3. जहां प्रेम हो तुम और मैं की दूरी कहाँ रह जाती है ... वो तो वैसे भी एक हो जाता है ...

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