भूख से बिलबिलाता वह बालक ,
फकत चाह चंद बासी टुकड़ों की ,
झोली में उसकी उम्मीदों का चारा डाल गए ,
गाल थपथपा , तस्वीर खींच , लाखों यूँ ही पा गए .....
जिंदगी धूप - छाँव का खेल रही ,
सदियों तक कडकती प्रचंड आग रही ,
न मिली सुख की ठंडी छाँव कहीं ,
तरसता रहा चीथड़ों को कोई जन ,
औ आप मुफ्त ही रेशम के ढेर पा गए .....
किसी की सूनी आँख में न ख्वाब न तमन्ना है ,
जिंदगी बस दिन औ रात जीने फेर है ,
स्वप्न उन बंजर पलकों पर कभी फला नहीं ,
आप उनके सपनों की दुनिया सजा कर ,
तुच्छ नगमे गा कर यूँ ही नाम कम गए .......
न नाम औ न ही पहचान है कोई ,
जिसने जैसे पुकारा विशिष्टता है वही,
न कोई अंधी दौड़ है न कोई मुकाम ,
फिर भी जीने की पुरजोर कोशिश है कायम ,
सिर्फ एक नाम विरासत से ले ,यूँ ही वाहवाही पा गए ..
जिंदगी धूप - छाँव का खेल रही ,
ReplyDeleteसदियों तक कडकती प्रचंड आग रही ,
न मिली सुख की ठंडी छाँव कहीं ,
तरसता रहा चीथड़ों को कोई जन ,
औ आप मुफ्त ही रेशम के ढेर पा गए .....
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ! ये तो आज की सच्चाई है !
आभार !
बहुत गहन बात को पकड़ा है आपने.......लोग फ़क़त उद्वार की बातें ही कर सकते हैं और उसमे से ही अपने स्वार्थ की पूर्ती करते हैं.........बहुत शानदार पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteजिंदगी धूप - छाँव का खेल रही ,
ReplyDeleteसदियों तक कडकती प्रचंड आग रही ,
न मिली सुख की ठंडी छाँव कहीं ,
तरसता रहा चीथड़ों को कोई जन ,
औ आप मुफ्त ही रेशम के ढेर पा गए .....
bahut badhiyaa
शायद यही किस्मत है ... कोई नाम पाता है किसी को कुछ नहीं मिलता ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....कुछ ऐसा जो आमतौर पर पढ़ने नहीं मिला करता.। जिसका तन और मन सुंदर होता है ,उसका भाव भा अमल और धवल होता है । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाएं ।. धन्यवाद ।
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ आज की सच्चाई हैं वैसे पूरी रचना ही दिल में बसी है , बधाई
ReplyDeleteWhere is my comment Poonam Ji?
ReplyDeletei cant see any of your comment Imran ji before....can u repost it may b a server error...sry for that...
ReplyDeleteओह ऐसा हो सकता है पूनम जी......
ReplyDeleteमुझे आपकी ये पोस्ट बहुत पसंद आई........दो अलग दशाओं को एक दूसरे के विपरीत होते हुए भी आपने बहुत खूबसूरती से पिरोया है पोस्ट में..........हैट्स ऑफ इसके लिए|
जिंदगी धूप - छाँव का खेल रही ,
ReplyDeleteसदियों तक कडकती प्रचंड आग रही ,
न मिली सुख की ठंडी छाँव कहीं ,
तरसता रहा चीथड़ों को कोई जन ,
औ आप मुफ्त ही रेशम के ढेर पा गए .....
जीवन में ऐसी विसंगतियां कई बार देखने में आती हैं....... गहरे उतरते हैं कविता के विचार
NICE POST
ReplyDeleteaap sabhi ko bahut bahut shukriyaa..
ReplyDelete