जब -जब मन तरसता सुनने को तुम्हारी आवाज़ ,
बंद कर पलकों के दरिन्चो करती हूँ प्रयास ,
कोशिश करती हूँ बार - बार ,
सुनती हूँ तुम्हे अपने ही आप ,
तुम्हारा, वो कहना.. 'जान ',
जैसे वीणा का कोई मद्धम राग ,
घुल जता है संगीत मेरी नस नस में
और बहने लगती है खुशबू पोर- पोर में ....
जैसे उतरी हो कुआंरी- कच्ची धूप ,
मन के सर्द - सूने आंगन में ,
जिस्म में फैल जाती एक गुनगुनाहट ,
तुम्हारे इश्क की .........
पल- भर को रुक जाती है धडकन ,
लुप्त हो जाती है चेतना ,
थम जाता है सारा ब्रह्मांड ,
अस्यंमित हो जाती है साँस,
बस तुम्हारे कहने भर से
.....'जान'..............
बंद कर पलकों के दरिन्चो करती हूँ प्रयास ,
कोशिश करती हूँ बार - बार ,
सुनती हूँ तुम्हे अपने ही आप ,
तुम्हारा, वो कहना.. 'जान ',
जैसे वीणा का कोई मद्धम राग ,
घुल जता है संगीत मेरी नस नस में
और बहने लगती है खुशबू पोर- पोर में ....
जैसे उतरी हो कुआंरी- कच्ची धूप ,
मन के सर्द - सूने आंगन में ,
जिस्म में फैल जाती एक गुनगुनाहट ,
तुम्हारे इश्क की .........
पल- भर को रुक जाती है धडकन ,
लुप्त हो जाती है चेतना ,
थम जाता है सारा ब्रह्मांड ,
अस्यंमित हो जाती है साँस,
बस तुम्हारे कहने भर से
.....'जान'..............
bahut sunder bhav................
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति,बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट...वाह रे मंहगाई...
ReplyDeleteshukriyaa.
Deleteआह! भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मन मग्न हो गया है.
shukriyaa.
Delete"जैसे उतरी हो कुआंरी- कच्ची धूप ,
ReplyDeleteमन के सर्द - सूने आंगन में ,
जिस्म में फैल जाती एक गुनगुनाहट ,
तुम्हारे इश्क की ........."
wah adhbhut Poonamji..
Radically Your's
shukriyaa..
Deletejad ho gayaa padh kar yah kavitaa
ReplyDeleteisse jyaadaa kuchh nahee likh paa rahaa hoon
behatareen
dhnyawad...
Deleteजैसे वीणा का कोई मद्धम राग ,
ReplyDeleteघुल जता है संगीत मेरी नस नस में
और बहने लगती है खुशबू पोर- पोर में ....
जैसे उतरी हो कुआंरी- कच्ची धूप ,
मन के सर्द - सूने आंगन में...
बहुत कोमल एहसासपूर्ण रचना !
आभार !
दरीचों को होना चाहिए था.....बहुत अच्छा अहसास होता है जब कोई अपनी जान से भी ज्यादा अपनी 'जान' बन जाता है.......सुन्दर पोस्ट|
ReplyDeleteshukriyaa..
Deleteवाह .....बहुत खूब
ReplyDeleteखूबसूरत भाव
shukriyaa..
Deleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ है ।
ReplyDeletedhnyawad..
Deleteबहुत ही खुबसूरत
ReplyDeleteऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति.....
dhnyawad..
Deleteshukriyaa...
ReplyDeleteसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा पूनम जी.
ReplyDeleteshukriyaa...zarur...
Deleteएक शब्द और श्रृष्टि का ठहर जाना फिर गतिमान हो जाना ...
ReplyDeleteलाजवाब कल्पना है ...
dhnyawad..
ReplyDeleteWelcome to www.funandlearns.com
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मन के प्रेमपगे भाव....
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