Tuesday, November 22, 2011

कुछ नहीं भूली हूँ मैं

 नहीं भूली हूँ मैं,
पूस की बर्फीली रात में,
नलके के नीचे बर्तन रगड़ना,
सबको सुला बत्ती बुझा ,
चुपके से सोना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
जून की तपती लू में,
थैला पकड़ बाज़ार जाना ,
सबकी पसंद की चीजें ,
लड़ - झगड़ के बनिए से लाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सावन की छमछमाती बरसात में,
छाता ले स्टॉप से बच्चों को लाना ,
टपटपाती साडी में कंपकंपाते हुए ,
जल्दी - जल्दी कलछुल का चलाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सब याद है मुझे ....माँ,
कुछ भी नहीं भूली हूँ मैं ...!!! 

10 comments:

  1. ..... नहीं भूली हूँ उँगलियों पर कोयले से पड़ी दरारें
    क्योंकि कभी इन दरारों से वाकिफ नहीं हुई थी न

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....वैसे तो सभी होते हैं पर आप अपनी माँ के बहुत करीब हैं शायद |

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  3. कुछ बातें कोई भूल ही नहीं सकता संवेदनशील रचना .....

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  4. स्वर्णिम यादें ...! भावपूर्ण ..!

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  5. भूलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है...!!

    सुन्दर भाव संजोये हैं आपने.....!!!

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  6. मीठी सी किंतु कसक भरी यादें, शायद कुछ इस तरह....
    चूल्हा-चौका -बासन बरतन
    उस आंगन पायल की छन-छन.
    दु:ख-सुख में जो बीती रातें
    खपरे से चुहती बरसातें.
    फुँकनी,चूल्हा, लकड़ी गीली
    दीवाली की रात रंगीली.
    कितनी यादें, कितने सपने
    उस आंगन में आये सब अपने.
    तू इन सबका मोल न जाने
    इनका मोल तो माँ पहचाने.

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  7. आदरणीया पूनम जैन जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    संवेदनाओं से भरपूर रचना -
    नहीं भूली हूं मैं,
    पूस की बर्फीली रात में,
    नलके के नीचे बर्तन रगड़ना,
    … … …
    नहीं भूली हूँ मैं… !
    जून की तपती लू में,
    थैला पकड़ बाज़ार जाना …

    बहुत भावपूर्ण !

    हम अपने अतीत को कभी नहीं भूल सकते …
    सच तो यह है कि यादें हमारे जीवन का आवश्यक अंग हैं …

    सुंदर रचना के लिए बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. पूनम जी,
    जीवन में अपने किये गए संघर्षों को
    कभी नहीं भूल सकता,बहुत ही सुंदर
    प्रस्तुति,बेहतरीन.....
    मेरे नए पोस्ट पर इंतजार है,....

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  9. bahut bahut shukriyaa..........maa mere hi andar rahti hae....

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  10. ओह! बहुत सुन्दर.......... आभार.

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